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हिन्दी प्रेमाख्यानकों का ऐतिहासिक विकास : ५७
एक समय अपने पति की सेज पर सुख में खोई रति ने पूछा-नाथ सारा त्रिभुवन तुम्हारे अधीन है, कोई भी तुम्हारे प्रेमपाश से मुक्त नहीं है । अतः मुझे बताइये कि तीनों लोकों में कौन तरुण और तरुणी सर्वाधिक सुन्दर हैं। काम ने कहा कि यों तो बहुत सों में ठीक-ठीक बता पाना कठिन है, फिर भी चंपावती नरेश की कन्या रंभावती और वैरागर के राजा सोमेश्वर का पुत्र अद्वितीय है। काम की बात सुनकर रति ने हठ किया कि दोनों का संयोग करा दीजिये। काम ने उसके हठ को पूरा करने के लिए उसे बताया-'हे सुन्दरो! दर्शन तीन प्रकार के होते हैं : स्वप्न, चित्र और प्रत्यक्ष ।' तुम वैरागर जाकर रंभा के वेश में सूरसेन को दर्शन दो और मैं सूरसेन के वेश में रंभा को दर्शन दूंगा। रति ने ऐसा करके सूरसेन को प्रेम-समुद्र में निमग्न कर दिया।
कामदेव चम्पावती रम्भा के शयनकक्ष में गये । कामदेव ने रंभा पर उच्चाटन और मोहनशर का प्रयोग किया। अबला को अधीन बनाकर मदन अन्तर्धान हो गये । प्रातःकाल राजकुमारी की दशा देखकर सखियाँ तरह-तरह की शंका करने लगी। कोई कहती हवा लगी है कोई कहती भूत का भय है। इसी प्रकार सभी परेशान थीं। इतने में आकाशवाणी हई कि आस रखो, 'सर विथाहर होंगे। रानी को खबर मिली। राजारानी बहुत दुःखी हुए। वैद्य, सयानों के तरह-तरह के उपचार किये गए। कोई लाभ नहीं हुआ। मदनमुदिता नामक सखी ने रंभा की स्वेद, स्तंभ, रोमांच, वेपथु आदि स्मरदशाओं को देखकर उसे प्रेमपीड़ा होने का अनुमान किया। अपनी इस शंका को उसने अन्य सखियों पर प्रकट किया। सभी सखियाँ रंभा के पास गईं। मदनमुदिता ने छलपूर्वक नलदमयंती, कामकन्दला, उषाअनिरुद्ध की कथा सुनाई। अन्तिम कथा को सुनकर रम्भा आकृष्ट हुई। मदनमुदिता ने कसम दिलाकर मन में पैठे चोर का नाम पूछ लिया। रम्भा के कुछ ही दिनों में जब काम की दसवीं दशा निधन समीप आने लगी तब लाचार हो मदनमुदिता ने रानी को बता दिया। मुदिता की राय मानकर रानी ने राजा से छिपाकर अनेक चित्रकार राजकुमारों का चित्र लाने के लिए भेजे । ___इधर रम्भा अपने प्रिय की आशा लगा रही थी। उधर सूरसेन बिना जल की मछली के समान तड़फ रहे थे। उन्हें दिन, रात, सूर्य-चन्द्र किसी की पहचान नहीं रही । जिस दिन से उन्होंने रम्भा को स्वप्न में देखा था