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५६ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक मनसा, वाचा, कर्मणा शिवसेवा करने को कहा। उनके ऐसा करने पर शिव प्रसन्न हुए और महारानी कमलावती ने एक पुत्ररत्न को जन्म दिया। ज्योतिषियों ने जन्म-लग्न-विचार करके उसके सम्बन्ध में भविष्यवाणी की कि राजकुमार बहुत गुणी होगा, चक्रवर्ती नरेश बनेगा, किन्तु तेरहवें वर्ष में त्रिया-विरह से दुःखी होगा। विरह में ३ वर्ष तक इधर-उधर कष्ट झेलता हुआ भटकेगा। चौथे वर्ष प्रिया-संयोग होने के कारण सभी दुःखों से छुटकारा पा सकेगा। इसके दो स्त्रियाँ होंगी और चार पूत्र, जो कि पृथ्वी का शासन करेंगे। यह कुमार रूप में काम, ज्ञान में गोरख, दान में बलि, साहस में विक्रमादित्य, शस्त्र-प्रयोग में अर्जुन, बल में भीम, व्रत में भीष्म, विद्या में भोज, सौन्दर्य में चन्द्रमा और शौर्य में सूर्य की तरह होगा । इसकी आयु पाँच कम सौ वर्ष की होगी । राजा ने पंडितों को दान देकर विदा किया। कुमार का लालन-पालन राजघरानों के अनुकूल होने लगा ।' १२ वर्ष में उसने वेद, व्याकरणादि तथा अस्त्र-शस्त्रादि चौदह विद्याएं सीख लीं। जब १३वें वर्ष में कुमार का प्रवेश होने लगा तो उसके अंग-अंग में तरुणाई फूट पड़ी। ज्योतिषियों की वाणी का स्मरणकर राजा ने तय किया कि कुमार से कोई प्रेम की बात न करे और न वह किसी तरुणी को देख सके।
गुर्जर देश की चम्पावती नगरी में राजा विजयपाल का राज्य था। यह राजा भी सर्वसाधनसंपन्न और सुखी था। उसके अन्तःपुर में अनेक रमणीक रमणियाँ थीं। परन्तु सन्तान के न होने से सभी व्यर्थ थीं। एक बार राजा शोचनीय दशा में बैठा हुआ था तो एक सिद्ध आया। राजा के अभिलाषा व्यक्त करने पर सिद्ध ने इन्हें चण्डी-पूजा करने का उपदेश दिया और भविष्यवाणी की कि तुम्हें एक कन्यारत्न की प्राप्ति होगी। समय आने पर महारानी पुष्पावती को स्वाति नक्षत्र में कन्योत्पत्ति हुई। पंडितों ने जन्म-लग्न देखकर भविष्यवाणी की कि यह बड़ी होनहार और भाग्यशालिनी पत्री है। इसकी कहानी युगों तक चलेगी। ११वें वर्ष में इसे पीड़ा होगी । वह रोग चौदहवें वर्ष में दूर होगा। कन्या का लालनपालन नप ने बड़े लाड़-प्यार से किया। रंभा के ११वें वर्ष में प्रवेश करते ही उसके अंग में अचानक मन्मथ का प्रवेश हो गया। उसके प्रत्येक अंग का सौन्दर्य बढ़ने लगा। यौवन जल में झाँकती कमलकली की भाँति फूटने लगा।