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५० : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक
इस प्रकार कृष्ण ओर रुक्मिणी सुख के दिन बिताने लगे। इसके बाद षड्ऋतुओं के आगमन का सुन्दर वर्णन है । वसन्तु ऋतु में कामदेव ने आकर रुक्मिणी के गर्भ में वास किया। समय आने पर कृष्ण को प्रद्युम्न नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। आगे चलकर प्रद्यम्न को भो अनिरुद्ध नामक पुत्र हुआ जिसका विवाह वाणासुर की कन्या उषा से हुआ। अन्त में कवि ग्रन्थ का उपसंहार के साथ समापन करता है।
छिताईवार्ता-ग्रन्थ के रचयिता हैं नारायणदास । इसके रचनाकाल के सम्बन्ध में कई प्रतियों में भिन्न-भिन्न तिथियाँ लिखी होने के कारण मतभेद है। डा० हरिकान्त श्रीवास्तव ने इसका रचनाकाल सं० १६४७ माना है। परन्तु डा० माताप्रसाद गुप्त ने सप्रमाण इसका रचनाकाल सं० १५०० तथा रतनरंगकृत कृति का समय सं० १५५० माना है, जो युक्तिसंगत है।
रचना कई दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है । रचना में कई स्थल ऐसे हैं जिनसे तत्कालीन वास्तुशिल्प, मूर्तिशिल्प और चित्रशिल्प के विषय में जानकारी प्राप्त होती है। युद्ध के वर्णन में उस समय की युद्धप्रणाली के साथ उस समय के युद्धास्त्रों का भी उल्लेख किया गया है। युद्ध का वर्णन साक्षात् युद्ध का दृश्य सामने ला देता है. जैसे कि युद्धस्थल पर खड़े सब देख रहे हों। कथा इस प्रकार है : . .
देवगिरि के राजा रामदेव पर अलाउद्दीन की सेना ने नुसरत खां के सेनानायकत्व में आक्रमण किया। रामदेव ने नुसरत खां को संधिपत्र देकर यद्ध टाल दिया तथा उसी के साथ दिल्ली चला गया। बादशाह प्रसन्न हो गया और उसे ससम्मान महल में स्थान दिया। रामदेव तीन वर्षों तक वहीं रहा। १. डा० माताप्रसाद द्वारा संपादित, काशो ना०प्र० सभा से सं० २०१५ में
प्रकाशित. २. भारतीय प्रेमाख्यान काव्य, पृ० ३५. ३. छिताईवार्ता में डा० माताप्रसाद की भूमिका देखिए, पृ० २४-२६. ४. वही, पद्य १०५ से ११३ तक और ३८२ से ३८६ तक और ३८९-९०. ५. वही, पद्य ११४ से १२२ तक. ६. वही, पद्य १२५ से १२८ तक. ७. वही, पद्य ४९६ से ५०१ तक.