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हिन्दी प्रेमाख्यानकों का ऐतिहासिक विकास : ५१
इधर रामदेव की कन्या छिताई विवाह योग्य हो गयी थी । अतः रानी ने रामदेव को इसकी सूचना देकर बुलाया । रामदेव ने अलाउद्दीन से देवगिरि आने की आज्ञा माँगी । बादशाह रामदेव की सेवा से प्रसन्न था । अतः उससे कोई माँग पेश करने को कहा । रामदेव ने एक श्रेष्ठ चित्रकार माँगा जिसे बादशाह ने सहर्ष स्वीकार कर लिया । रामदेव कुशल चित्रकार के साथ देवगिरि वापिस आ गया ।
रामदेव ने चित्रकला प्रदर्शन के लिए एक राजभवन का निर्माण कराया जिसमें उस चित्रकार ने सुन्दर-सुन्दर चित्र बनाने प्रारंभ किये । एक दिन छिताई उस भवन में चित्र देखने आई । चित्रकार छिताई के सौन्दर्य को देखकर मूच्छित हो गया । उसके बाद वह छिताई को प्रतक्षा में रहा । पुनः जब छिताई चित्रशाला में आई तो चित्रकार ने उसे जिम रूप में देखा उसी रूप में कागज पर उतार लिया । कुशल चित्रकार छिताई का मुस्कराना, चलना, बैठना सब अंकित कर लिया । एक बार पुनः छिताई आई तो वह मृग शावकों को हाथ में हरे जौ खिला रही थी । उसकी इस मुद्रा को देखकर चित्रकार पुनः मूर्छित हो गया । जब उसे चेत हुआ तो उसने पुन: इस मुद्रा को चित्रित कर लिया ।
जब राजा का नवीन भवन बनकर तैयार हो गया तब उसने द्वारसमुद्र के राजा भगवान् नारायण के पुत्र सोंरसी के साथ छिताई का विवाह निश्चित कर दिया । छिताई का विवाह सम्पन्न हो गया । छिताई अपने ससुराल चली गईं। कुछ दिन बाद पिता के बुलावे पर अपने पति के साथ आई । वे दोनों सानन्द वहाँ रहने लगे ।
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सरसी को शिकार खेलने का व्यसन पड़ गया था । रामदेव के मना करने पर भी वह नहीं माना। एक बार एक मृग के पोछे दौड़ते-दौड़ते पूरी रात बीत गई किन्तु वह मृग हाथ नहीं आया । मृग गहन जंगल में भर्तृहरि के आश्रम में पहुँच गया । भर्तृहरि की समाधि टूट गई। उन्होंने सरसी को बहु विधि समझाया परन्तु वह नहीं माना । अतः भर्तृहरि ने उसे स्त्री-वियोग का शाप दे दिया । सोंरसी को अपने कृत्य पर पश्चात्ताप होने लगा | वह वापस देवगिरि आ गया ।
इधर चित्रशाला का कार्य पूरा हो चुका था । अतः बहुत सी भेंट के साथ अलाउद्दीन के पास चित्रकार को भेज दिया । दिल्ली पहुँचकर सभी भेंट का सामान चित्रकार ने अलाउद्दीन के सामने प्रस्तुत किया। चित्र