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________________ ४० : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक छोड़ देने की आज्ञा दी। सुन्दरता उसके लिए अपराध बन गई थी। वह . शहर छोड़ने से पहले कामकन्दला से मिला। कामकन्दला ने उसे अपने घर आमन्त्रित किया। दोनों ही उस मुलाकात से एक-दूसरे के प्रति प्रेम में आबद्ध हो गये। दोनों ने प्रेम-प्रतिज्ञाएं कीं और दुःखित हृदय दोनों एक-दूसरे से अलग हो गये। माधव उज्जैन पहुँचा। वहाँ उसने अपने दुःख को महाकालेश्वर के मंदिर की दीवाल पर लिख दिया। राजा विक्रम रात्रि में शहर की जानकारी के लिए परिभ्रमण को निकला। वह मंदिर गया तब वहाँ दीवाल पर माधव द्वारा लिखित लाइनों को पढ़ा । राजा ने इन लाइनों के लेखक का पता लगाने का काम एक वृद्ध राज्य कर्मचारी को सौंपा । माधव का पता लगा लिया गया और उसे राजा विक्रम के सामने पेश किया गया। विक्रम ने माधव के प्रेम को देख कामकन्दला को उसे दिलाने का निश्चय किया। और यह भी निश्चय किया कि यदि कामसेन कामकन्दला को नहीं देगा तो उससे युद्ध करके उसे लाया जायेगा। ' विक्रम ने पहले कामकन्दला के प्रेम की परीक्षा लेने का विचार किया । वह छिपकर कामकन्दला के पास गया और अपने लिए उससे इच्छा व्यक्त की। उससे यह भी कहा कि माधव की मृत्यु हो गई है। इतना सुनते ही कामकन्दला अचेत होकर मरणासन्न हो गई । राजा को इसके प्रेम पर विश्वास हो गया । तब उसने वापिस होकर माधव को भी परीक्षा ली। माधव को भी वही दशा हुई। हाई। । विक्रम अपने इस कृत्य पर हार्दिक पश्चात्ताप करने लगे। वे इस सोच में पड़ गये कि उन्हें एक स्त्रीहत्या और ब्रह्महत्या का पाप लगेगा। इतने में उनके एक मित्र वेताल की शक्ति ने परलोक से आकर इस संकट का निवारण किया। दोनों प्रेमियों को पुनः मिला दिया। विक्रम ने उन दोनों की शादी खूब सजधज और धूमधाम से की। दोनों प्रेमी-प्रेमिका आनन्द और सामाजिक प्रतिष्ठा के साथ जीवन यापन करने लगे। ___ इस काव्य की कतिपय अपनी विशेषताएँ हैं। प्रथम तो काव्य का आरम्भ कामदेव की स्तुति से किया गया है। प्रबन्ध के द्वितीय अंग में कला-अभिज्ञान, कामकन्दला का नखशिखान्त वर्णन, तृतीय अंग में पुष्पावती नगरी का विस्तृत वर्णन, चतुर्थ अंग में चमत्कार, माधववशी
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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