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________________ - हिन्दी प्रेमाख्यानकों का ऐतिहासिक विकास : ३९ माधवानल-कामकन्दलाप्रबन्ध'- मध्यकालीन प्रेमाख्यानकों में कामकन्दला का महत्त्वपूर्ण स्थान है । उस समय यह कथा इतनी अधिक लोकप्रिय थी कि कई कवियों ने इसे अपनी रचनाओं का विषय बनाया। जिस माधवानल-कामकन्दलाप्रबन्ध को यहाँ चर्चा की जा रही है, वह कविवर गणपतिकृत सं०१५८४ की रचना है। इसका कथासार इस प्रकार है: सर्वप्रथम कवि ने रतिपति मदन की वंदना की है तब फिर सरस्वती और गणेश की । अभिधेय, प्रयोजन, संबन्ध और कविपरिचय देने के बाद प्रबन्ध का प्रारम्भ किया है। सरस्वती नदी के तीर पर शुक शंकर जी का तप करता है । काम का आह्वान करता है । काम से कर जोड़कर प्रार्थना करता है कि 'कृपा करके मुझे दीजिए'। काम प्रश्न करता है 'क्या काम हूँ' । इसके बाद वेदव्यासवचन, काम-युद्धप्रयाण, कामप्रयोग और उसकी निष्फलता, रति-प्रोत्साहन तथा शुक-काम संवाद होता है। शुक काम को श्राप देता है। काम की कृपायाचना पर शापानुग्रह होता है। इसके बाद ब्रह्मशाप का माहात्म्य बतलाया गया है। माधव का जन्म होता है और यक्षिणी उसका हरण कर ले जाती है। कथा इस प्रकार आगे बढ़ती है। पुष्पावती नगरी में कामसेन नाम का नृप राज्य करता था। उस नगरी में एक ब्राह्मण युवक रहता था जो मदन के समान सुन्दर था। उसके सौन्दर्य पर नगरांगनाएँ मुग्ध हो उसके पीछेपीछे हो लेती थीं। नागरिकों ने मिलकर राजा से इसका समाधान करने को कहा। राजा ने इसकी जाँच की तो पता चला कि उनकी स्वयं की स्त्री की भी रुझान उधर होने लगी तो उसे देशनिकाला दे दिया। ___ माधवानल देशाटन करते हुए अमरावती पहुँचा। वहाँ के राजा को जब इसके असाधारण गुणों का पता चला तो राजा ने इसे अपने दरबार में ससम्मान स्थान दिया । राजा की दरबारी नर्तकी जिसका नाम कामकन्दला था, सभा में नृत्य कर रही थी। एक षट्पद ने गुंजार के साथ नर्तकी का व्यवधान किया। फिर भी वह अबाधित नृत्य करती रही। माधवानल ने उसको अत्यधिक प्रशंसा की और उसे वही उपहार दे दिया जो राजा ने उसे ससम्मान भेंट किया था। __ राजा अविलम्ब आक्रोशित हो उठा और उसने माधवानल को शहर १. श्री एम० आर० मजूमदार द्वारा संपादित और गायकवाड़ ओरियण्टल सिरीज़ से प्रकाशित.
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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