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________________ ३८ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक दूसरी ओर सिद्धनाथ योगी जो कि उसकी विजय से चिढ़ा था, उसने लखमसेन को स्वप्न दिया कि मुझे पानी पिला नहीं तो मैं तुझे श्राप दूंगा। जिससे राजा डर गया और पद्मावती से कहकर उसे पानी पिलाने चल पड़ा। परन्तु योगी ने कहा कि मेरी आज्ञा मानने की प्रतिज्ञा करो तभी मैं पानी पियूँगा। राजा ने स्वीकार किया । जब राजा को पुत्रोत्पन्न हुआ तो वह उसे पूर्व प्रतिज्ञा के अनुसार योगी के पास ले गयो। योगी ने पुत्र के ४ टुकड़े करने को कहा। शिशु के चार टुकड़े कर दिये गये। जिससे प्रथम टुकड़े से एक धनुषबाण निकला, दूसरे से एक तलवार निकली, तीसरे से एक धोती और चौथे से एक सुन्दरी निकल पड़ी। राजा इस घटना के कारण मर्माहत हो गया और घर-बार त्यागकर जंगल की राह ली । वह काफी दूर निकल गया । उसने वही धोती पहन आकाश में गमन किया और कपूरधारा नगर में पहुँचा, जहाँ का राजा चन्द्रसेन था। वहाँ उसने हरिया सेठ के. लड़के को जल में डूबने से बचाया । उसी सेठ के यहाँ वह रहने लगा और तब उसने वहाँ को राजकुमारी चंद्रावती का दर्शन किया। दोनों एक-दूसरे पर आसक्त हो गए। आगे प्रेम बढ़ता गया। वे चुपके-चुपके एक-दूसरे से मिलने लगे। जिसका भण्डाफोड़ होने से चन्द्रसेन बहुत क्रुद्ध हुआ और लखमसेन को मरवाना चाहा । चन्द्रसेन को इसका वास्तविक परिचय मिल जाने पर, दोनों का विवाह सम्पन्न हो गया। पद्मावती भी लखमसेन के बिना विरह में छटपटा रही थी। वह सिर्फ एक बार तो अवश्य उससे मिलना चाहती थी। इस कारण वह अनेकों प्रयत्न कर रही थी। इसी बीच योगी और लखमसेन की भिडन्त हो जाती है। राजा ने योगी को मार डाला। फिर पद्मावती और लखमसेन एक-दूसरे से मिलते हैं । पद्मावती की भेंट चन्द्रावती से होती है। लखमसेन अपनी इन दोनों पत्नियों को साथ लेकर अपने श्वसुर हंसराय के यहाँ पहंचा। वहाँ से प्रसन्नतापूर्वक कुएं के मार्ग से पुनः लखनौती आ गया। वहाँ आकर सभी के साथ सुख से रहने लगा। सत्यवती की कथा-संवत् १५५८ में ईश्वरदास द्वारा प्रणीत इस रचना में इन्द्र के पुत्र ऋतुवन और चन्द्रोदय को पुत्री सत्यवती की कहानी है । यह विशेष महत्त्वपूर्ण कृति नहीं है। १. हिन्दुस्तानी पत्रिका, भाग ७, पृ० ८१ में प्रकाशित.
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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