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हिन्दी प्रेमाख्यानकों का ऐतिहासिक विकास : ३७
हंसराय को बाला को प्राप्त करने के लिए चन्द्रपाल, चन्द्रसेन, अजयपाल, धरपाल, हमीर, हरपाल, दंडपाल, सहसपाल, विजयचंद्र आदि ९९ राजाओं को सुरंग वाले कुएँ में डाल दिया। अब कुमारी के कथनानुसार दो राजाओं का लाना शेष था। अतः उसी प्रयत्न में योगी एक विजौरा नीबू लेकर लखनौती के राजा लखमसेन के पास पहँचा । वहाँ पर आवाज लगाकर आकाश में उड़ गया। प्रतिहार ने लखमसेन से कहा तो उन्होंने योगी को खोज की। योगी आकर वह विजौरा नीब देकर फिर गायब हो गया। इस चमत्कार से लखमसेन उसकी ओर आकृष्ट हो गया और अपना राजपाट छोड़कर वन में चला गया। वहाँ योगो से भेंट हुई। राजा को प्यास लगने पर योगी उसे उसी निर्मित कुएं पर ले गया और धक्का देकर उसी में गिरा दिया। लखमसेन को सुरंग में पड़े ९९ अन्य राजाओं से योगी के छल का पता चल गया। उसने धीरे-धीरे सभी राजाओं को बाहर कर दिया। वह स्वयं वहाँ रह गया। इस बात का पता योगो को भी चल गया। योगी शोघ्र ही सुरंग पर पहुँचा और एक ५२ हाथ की शिला कुएँ पर ढंक दी जिससे कुएं में अंधेरा हो गया। लखमसेन को बड़ी घुटन होने लगी और वह आत्महत्या की सोचने लगा। वह कुएँ से ईंटें उखाड़ने लगा। ईंटे उखाड़ते समय उसे कुछ प्रकाश दिखाई दिया। अतएव उसे आशा हो गई। उसने वहीं से मार्ग खोज निकाला और उससे वह एक सुन्दर तालाब पर पहुँच गया। वहाँ के सुन्दर दृश्यों का अवलोकन करता हुआ निकटवर्ती नगर में पहुंच गया। वहाँ उसने अपने को लखनौती के लखमसेन का पूरोहित बताया और एक ब्राह्मण के घर में रहने लगा। एक बार वह ब्राह्मण उसे राजदरबार में भी ले गया। बाद में उसे वहीं पुरोहित भी नियुक्त करा दिया। इसी बीच पद्मावती को उसने देखा, पद्मावती ने भी उसे देखा । पद्मावती उस समय तक विवाह योग्य हो चली थी। अतः उसका स्वयंवर रचा गया। अन्य राजाओं के साथ ही लखमसेन ब्राह्मण के वेष में आया । राजकुमारी ने उसी को माला पहना दी। सभी लोग बिगड़ गये। उसने अपनी वीरता का परिचय दिया। कनकावली के राजा वीरपाल से उसका घोर युद्ध हुआ। अन्त में उसका वास्तविक परिचय मिल जाने के कारण पद्मावती का विवाह उसी के साथ सम्पन्न हुआ।