________________
हिन्दी प्रेमाख्यानकों का ऐतिहासिक विकास : ४१
करण प्रयोग, पंचम अंग में कामकन्दलानत्य-प्रसंग, वस्त्रपरिधान, केशप्रसाधन, केलियुद्ध, षष्ठ अंग में वेश्याव्यवसाय, द्वादशमासविरहवर्णन, पद्मिनीचरित, शुभशकुनसूचक, सप्तम अंग में विकटमार्ग-वर्णन, महावन-प्रवेश, कामामृत-प्रयोग, माधव-कामकंदला-मिलन और अष्टम अंग में मदनावाससामग्री-वर्णन और द्वादशमासभोग-वर्णन विशेष द्रष्टव्य तथा महत्त्वपूर्ण अंश हैं।
माधवानल-कामकन्दला-यह अज्ञात कवि द्वारा रचित सं० १६०० को रचना है। याज्ञिक संग्रह, लखनऊ में इसकी प्रति सुरक्षित है। इसमें माधव और कामकन्दला की प्रसिद्ध कथा वणित है।
जैसा कि लिखा जा चुका है कि किसी समय माधव और कामकन्दला की कथा अत्यधिक प्रचलित थी। इसीलिए कई कवियों ने अपने काव्यों का इसे उपजीव्य बनाया। गणपतिकुत और एक अज्ञात कविकृत उक्त कथा का परिचय अभी कराया गया है। कुशललाभकृत कामकन्दलाचउपई सं० १६१३ में लिखी गई। दूसरी रचना एक संस्कृत में मिलती है जो संस्कृत गहा-पद्य मिश्रित है । इसके रचनाकार का नाम आनन्दधर है। कृति का माधवानलाख्यानम्, माधवानलनाटकम् और माधवानलकथा नाम दिया हुआ है। रचनाकार ग्रन्थ-समाप्ति पर लिखता है कि जो इस कथा को सुनता है उसे कभी विरह-दुःख नहीं आ सकता। सं० १७३७ में इसी कथा को लेकर दामोदर कवि ने भी माधवानल-कामकन्दलाकथा लिखी।
कविवर दामोदर विरचित कथा में कहा गया है कि राजा गोविन्दचन्द्र की सम्राज्ञी माधव पर आसक्त हो गई। माधव से उसने प्रेम
१. डा० शिवप्रसाद सिंह द्वारा संपादित रसरतन, पृ० ६७ ( भूमिका ) से
उद्धृत.. २. ये रचनाएँ गायकवाड़ ओरियण्टल सिरीज़ में प्रकाशित हैं. ३. वही. ४. आनन्दधर विरचित कामकन्दलाख्यानम्, पृ० ३७९.
माधवानलसंज्ञं हि नाटकं शृणुयान्नरः ।
न जायते पुनस्तस्य दुःखं विरहसंभवम् ॥२३३॥ ५. गायकवाड़ ओरियण्टल सिरीज़ में प्रकाशित.