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३० : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक आख्यानकों को भारतीय कहा जा सकता है। यह सत्य है कि हिन्दू कहे जानेवाले आख्यानकों में भारतीय संस्कृति के लोकतत्त्वों, दन्तकथाओं अथवा पौराणिक कथनों से कथा का संयोजन तो किया हो गया है, दूसरी ओर भारतीय परिवेश का भी पूर्ण ध्यान रखा गया है । सूफ़ी आख्यानों में ऐसी बात नहीं है। इन आख्यानों के कथा-स्रोत भले ही भारतीय हों, कथा की आत्मा और उद्देश्य भारतीयेतर रहे हैं। जो हो, अपने सिद्धान्तों को उदार बनाकर सूफ़ियों ने हिन्दी-साहित्य को उपकृत तो किया ही है। भारतीय संस्कृति और साहित्य में इतर संस्कृति और . साहित्य को खपाने की क्षमता प्रारम्भ से ही रही है । हिन्दी प्रेमाख्यानकों को हिन्दू और सूफ़ी इन दो वर्गों में बाँटना बहुत वैज्ञानिक नहीं प्रतीत होता क्योंकि धार्मिक मान्यताओं के आधार पर साहित्य का वर्गीकरण कथमपि उचित नहीं है। वैसे भी शिल्प की दष्टि से इनमें कोई विशेष . अन्तर भी दिखाई नहीं पड़ता। दोनों ही अपभ्रंश कथाशिल्प से पूरी तरह प्रभावित हैं। पर साहित्य में इस तरह के वर्गीकरण चलते रहे हैं। स्वयं शुक्ल जी ने 'हिन्दू हृदय' और 'मुस्लिम हृदय' की बात कही है। आगे चलकर हरिकान्त श्रीवास्तव ने भारतीय आख्यान-काव्य परम्परा को हिन्दू और सूफ़ी वर्गों में बाँट दिया है। मैं भी सुविधा के लिए यह वर्गीकरण स्वीकार करके चला हूँ। वैसे मेरा उद्देश्य,दोनों ही प्रकार के आख्यानकों के शिल्प पर अपभ्रंश का प्रभाव दिखाना ही है।
हिन्दू प्रेमाख्यानकों की श्रेणी में ढोला-मारू रा दोहा, वीसलदेवरासो, सदयवत्स-सावलिंगा, लखमसेन-पद्मावतीकथा, सत्यवती की कथा, माधवानल-कामकन्दला (गणपति, कुशललाभ, दामोदर और अज्ञात कवि द्वारा रचित ), प्रेमविलास, प्रेमलताकथा, रूपमंजरी, उषा को कथा, बेलि कृष्ण-रुक्मिणी री, छिताईवार्ता, रसरतन, नल-दमयन्तीकथा, रुक्मिणीमंगल, नलदमन, माधवानल नाटक, पुहुपावती, चंदकुँवर री बात, नलचरित्र, विरहवारीश, नलोपाख्यान, मधुमालती, नल-दमयन्तीचरित, कामरूप-चन्द्रकला को प्रेम कहानी, उषाहरण, उषाचरित, उषा की कथा ( कवि रामदासकृत ), रमणशाह-छबीली-भटियारी की कथा, कामरूप की कथा, रुक्मिणीमंगल, रुक्मिणीपरिणय, नलदमयन्ती की कथा ( अज्ञात कवि ), प्रेमपयोनिधि, बात सायणी चारणी री और राजा चित्रमुकुट और रानी चन्द्रकिरण की कथा आदि प्रेमाख्यानक आते हैं ।