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________________ हिन्दी प्रेमाख्यानकों का ऐतिहासिक विकास : २९ ४. इन महाभारत आदि आपकाव्यों के सर्गों में वर्णित अलग अलग उपाख्यानों को भी आख्यान कहा जाता था। इस अर्थ के प्रामाण्य में तारानाथ ने स्वकृत 'वाचस्पत्यम्' में निम्नलिखित श्लोक उद्धृत किया है : नामास्य सर्गोपादेवकथया सर्गनाम तु। अस्मिन्नार्षे पुनः सर्गा भवन्त्याख्यानसंज्ञकाः॥ और इनका उदाहरण देते हुए लिखा है, 'यथा भारते रामो पाख्यानं, नलोपाख्यानं इत्यादि । (ग) हिन्दी में यह शब्द प्राय: प्राचीन कथानक या वृत्तान्त के हो __अर्थ में प्रयुक्त होता है। (घ) पर्याय : कथा, कथानक, आख्यायिका, वृत्तान्त इत्यादि । (ङ) व्यापक अर्थ : कहानी, कथा और इसी अर्थ में उपर्युक्त पर्याय दिये गये हैं। इसका सीमित अर्थ है ऐतिहासिक कथानक, पूर्ववृत्त-कथन। आख्यान शब्द के उपर्युक्त अर्थों से आख्यान को व्यापकता पर विशद प्रकाश पड़ता है। वास्तव में कहानी, कथा, कथानक, आख्यायिका और वृत्तान्त को आख्यान के पर्यायवाची मान लेने पर उसके अर्थ-विस्तार का स्पष्टीकरण हो जाता है । संभवतः आख्यान शब्द के उक्त अर्थविस्तार से कुछेक लोगों को यह संदेह होगा कि फिर कहानी, कथा आदि का भेद कैसे जाना जा सकेमा ?' यहाँ मैं यह कहना चाहूँगा कि जहाँ कथा, कहानी और उपन्यास में भेद है, वहीं सभी में किसी न किसी रूप में कथा-तत्त्व का पाया जाना अवश्यम्भावी है। अतएव आख्यान के अर्थविस्तार को भी एक सोमित घेरे में देखना चाहिए। यहाँ मैं यह भी स्पष्ट कर दूं कि चरित, पुराण, काव्य, खण्डकाव्य, रासो-रासक और महाकाव्य तक को ( यदि उनमें प्रेमकथा की प्रधानता है तो ) प्रेमाख्यान या प्रेमाख्यानक कहने में मुझे कोई सीमोल्लंघन की बात दृष्टिगोचर नहीं होती। इससे कोई साहित्यिक गतिरोध भी उत्पन्न नहीं होता। हिन्दी में हिन्दू और सूफो दो प्रकार के आख्यानक काव्य लिखे गये हैं। दोनों ही प्रकार के आख्यानकों के रचयिता भारतीय थे। अतः उन १. डा० आद्याप्रसाद मिश्र, हिन्दी साहित्यकोश, भाग १, प० ८८ से उद्धृत.
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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