________________
हिन्दी प्रेमाख्यानकों, अपभ्रंश कथाकाव्यों के शिल्प का तुलनात्मक अध्ययन : ३४३ नागमतोवियोग खंड में भी चांचरि का इसी अर्थ में उल्लेख हुआ है :
फागु करहिं सब चांचरि जोरी॥
मोहि तन लाइ दोन्हि जस होरी ।। - वही, ३५२.५. - पुहकर कवि ने मनोरंजन के साधन के रूप में ही चांचरि का उल्लेख किया है :
गीत नाद चांचरि चित लावह । काव्य कथा कहि काल गमावहु । बात सरस कवि कहें सब कोई । इक सिंगार रस वरजित सोई॥
-आदि खंड, १५. जलक्रीड़ा, उद्यानक्रीड़ा, वेश्यावर्णन आदि के उदाहरण वस्तुवर्णन के अन्तर्गत दिये गये हैं अतः यहाँ मनोरंजन के साधनों में उनको उद्धृत नहीं किया जा रहा है। कदाचित् जिन मनोरंजन के साधनों का ऊपर उल्लेख किया गया है वे सामूहिक साधन हैं । व्यक्तिगत साधनों में कुछ लोग प्रेमकथाओं को बांचकर अथवा दूसरे से सुनकर भी समय यापन कर लिया करते थे। बनारसीदास जी ने अपने अर्ध-कथानक में इसकी चर्चा भी की है:
तब घर में बैठे रहे, जांहि न हाट बाजार। मधुमालति मिरगावति, पोथी दोइ उदार ॥३३५॥
ते बांहि रजनी समै, आवहिं नर दस बीस। · गावहिं अरु बातें करहि, नित उठि देहि असीस ॥ ३३६ ॥
-पृ० ३८. पदमावत में रतनसेन के शिकार को जाने का उल्लेख एवं शतरंज . के खेल का वर्णन ये सब मनोरंजन के साधनों के अन्तर्गत आते हैं । इस • प्रकार अपभ्रंश एवं हिन्दो प्रेमाख्यानकों की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, कथाविन्यास, चरित्र, कथोद्देश्य, वस्तुवर्णन और मोटिफ आदि के तुलनात्मक अध्ययन के बाद हम कह सकते हैं कि हिन्दी प्रेमाख्यानकों का शिल्प अपभ्रंश कथाकाव्यों के शिल्प का ही ऐतिहासिक विकास है ।