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३३८ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक
हैं और पति की सेज तक ले जाकर छोड़ आती हैं। कुछ कथानकों को उदाहरणस्वरूप सामने रखकर विचार करने पर वर्णन-परिपाटी का प्रश्न और भी स्पष्ट हो जायेगा। भविसयत्तकहा में श्रुतपंचमी का महत्त्व बताया गया है। कथा में सज्जन-दुर्जन प्रसंग से लेकर कथावतार, उद्देश्य आदि कथानक-रूढ़ियों तक का पालन किया गया है। इस प्रेमाख्यानक का पूर्वार्ध रोमांचक और साहसिक यात्रा-वर्णनों से परिपूर्ण है। उत्तराद्ध में युद्ध तथा पूर्व भवों का वर्णन है। इस प्रकार यह किसी लोकप्रचलित कथानक पर आधारित कथा मालूम होती है। यदि हम भविष्यदत्तकथा और रत्नसेन-पद्मावती की तुलना करें तो दोनों की. कथापरिपाटियों में अधिकांशतः साम्य प्रतीत होगा। जिस प्रकार का प्रेम-चित्रण भविष्यदत्तकथा में है, ठीक उसी प्रकार का चित्रण रत्नसेनपद्मावती की कथा में है। रत्नसेन की रानी पद्मिनी का हरण करने का प्रयत्न अलाउद्दीन द्वारा किया जाता है और इधर भविष्यदत्त की स्त्री का हरण उसके सौतेले भाई बंधुदत्त द्वारा कर लिया जाता है । कालक्रमघटनाक्रम के अनुसार भविष्यदत्त को उसकी स्त्री वापिस मिल जाती है।
करकंडुचरिउ नामक एक अन्य अपभ्रंश काव्य ऐसा है जिसकी कथा अत्यधिक रोचक है। इसकी कथा का उल्लेख पांचवें अध्याय में किया जा चुका है परन्तु तुलनात्मक अध्ययन को दृष्टिगत रखते हुए यहाँ उसे दुहराना पड़ेगा। अंगदेश की चंपापुरी में धाड़ीवाहन राजा राज्य करते थे। एक बार वे कुसुमपुर गये। वहाँ पद्मावती नाम की एक युवती को देखकर मोहित हो गए। उसके साथ उन्होंने पाणिग्रहण कर लिया। रानी गर्भवती हुई और उसे दोहद उत्पन्न हुआ। इसी बीच वह जंगल में भटक गई और समय पर श्मशान में करकंडु नामक पुत्र उत्पन्न हुआ।
कुछ समय बाद करकंडु का विवाह मदनावलो से हो गया। न पहचानने के कारण पिता-पुत्र में युद्ध हुआ जिसका वर्णन लव-कुश और राम के युद्ध का स्मरण कराये बिना नहीं रहता। करकंडु का राज्यविस्तार हुआ। वे सिंहलद्वीप पहुँचे और वहां रतिवेगा से विवाह किया। जलमार्ग से लौट रहे थे तब किसी विद्याधरपुत्री द्वारा हरण कर लिए गए। इस प्रकार की मुख्य कथा में नौ अवान्तर कथाएं भी हैं।