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________________ हिन्दी प्रेमाख्यानकों, अपम्रश कथाकाव्यों के शिल्प का तुलनात्मक अध्ययन : ३३५ रतन के १४ + १० = २४ मात्राओं के इस छंद का उदाहरण प्रस्तुत कर कासी कौसल कारनाट, कनवज्ज कलिंजर। कामरूप कैकय कलिंग, केदार कंछघर ॥ कुछ छन्द संस्कृत से अपभ्रंश में ठीक उसी नाम से ले लिए गए और कुछ का कालभेद से नामपरिवर्तन तो हुआ परन्तु रूपपरिवर्तन नहीं हआ। अपभ्रंश-हिन्दी छन्दों के विषय में भी उक्त बात लागू होती है। संस्कृत का जो सुग्विणी छन्द है वही कामिनीमोहन नाम से सामने आया। .. कामिनीमोहन छन्द : इसमें चार रगण होते हैं। अपभ्रंश-कवि यशःकीर्ति का छन्द उदाहरणार्थ प्रस्तुत है : अस्सथामो मुऊ तेहि ता उत्तऊ। मुच्छिऊ दोण धनु बाण हत्थह चुऊ। चेयणा.या लहिवि कस्सा वि णउं पत्तिउ। सच्चवाई य तउ धम्म. सुउ पुच्छिउ ॥ रसरतन में कामिनीमोहन छंद का प्रयोग हुआ है : देषि सोभा रही रीझि प्यारी प्रिया। मग्ग भूलै चलै चित्त हार त्रिया। संग छांड मृगी जेमि भूली फिर। हार टूटै हियै भूमि मोती गिरै ॥१२५॥ एक जानै नहीं छीन है अंचरा । मौन रीति चली सीस मंजै धरा। एक टक्कै रही अंषिया जोहनं । रूप देषौ जहां कामिनी मोहनं ॥१२८॥ -रसरतन, पृ० १४३. पूहकर ने जिस छन्द में वर्णन किया है उसी में उस छन्द का नामोल्लेख और कहीं-कहीं लक्षण भी दे दिया है। कामिनीमोहन यहाँ दो अर्थों में प्रयुक्त होता है : एक प्रासंगिक अर्थ के लिए, दूसरा छन्द के नामोल्लेख के लिए। इसी प्रकार भुजंगप्रयात 'भुजंगा' शब्द द्वारा व्यक्त किया गया है : बजै दुंदुभी ढोल भेरी मृदंगा। सुनै सोर पाताल मध्ये भुजंगा॥ १९६॥
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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