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हिन्दी प्रेमाख्यानकों, अपभ्रश कथाकाव्यों के शिल्प का तुलनात्मक अध्ययन : ३२५
झंकार पलइ वण रवइ कुहिल गण विरहिअ हिअ हुअ दर विरसं॥
-प्राकृतपैंगलम्, २१३. रसरतनकार ने षड्ऋतु-बारहमासे का अत्यधिक मनमोहक चित्र उपस्थित किया है। वसंत ऋतु का रसरतन में इस प्रकार वर्णन किया
गया है :
मधु मास चैत सोभित वसंत । संयोग संग दंपति लसंत। रितु पाई राज रति राज साज। दल सज्ज कोन विरहिनी काज ॥ ७९ ॥ अंकुरित पत्र तरु हरित नील । हलि चलित मनौ दल मदन पोल। रंग अरुन फूलि किंसुकि विधान । जनु कटक मांझ सोभित वितान ॥८॥ सोभित सरस छवि अम्ब मौर । सिर ढहिं मनौ मनमथ्य चौर। केवरो मलति मालती जाइ। जनु मैन वान राषिय वनाइ ॥ ८१॥ . गुंजरत भ्रमर कोकिल सुकोर । जसु भनत बंदिजन विप्र धीर। लपटाइ लता लागी तमाल । जनु करति त्रिया कर अंकमाल ॥ ८२॥ सुनु सुक जु चित्त मुहि नहिन चैत । भये मदन सूर मिलि मदन कैत । ‘हिय सून प्रान घरनी निकंत । किहि अंग संग मानौ वसंत ॥ ८३॥
-युद्धखंड, पृ० २१२. ... बारह मासों के वर्णन के लिए नेमिनाथचउपई का नाम उल्लेखनीय है। नेमिनाथचउपई में जैनों के बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथ और राजमती के प्रेम का रोमांचकारी एवं स्वाभाविक चित्रण है। ज्येष्ठ मास में .जिस प्रकार सूर्य तप्त होता है, नदियां सूख जाती हैं, ऐसी अवस्था में पति के न आने से चंपा-लता को पुष्पित देखकर नेह-पगो राजुल मूच्छित हो जाती है : जिट्ठ विरह जिमि तप्पइ सूर, छण वियोग सूखिउ नइ पूर। पिक्खिउ फुल्लिउ चंपइ विल्लि, राजल मूर्ची नेह गहिल्लि ॥
इस वर्णन का जायसी के पदमावत में किए गए ज्येष्ठ मास के वर्णन से साम्य देखा जा सकता है :