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________________ प्रास्ताविक : १९ विचार का अभाव है । कहीं शिल्प की चर्चा उठाई भी गई है तो वह नगण्य है। हिन्दी प्रेमाख्यानकों के शिल्पगठन पर वास्तविक प्रभाव अपभ्रंश कथाकाव्यों का पड़ा । शुद्ध भारतीय शैली के प्रेमाख्यानक अपभ्रंश के पुराण और चरितकाव्यों की देन हैं। विचारकों ने उक्त सत्य को स्वीकार किया है, फिर भी इस विषय पर विस्तार के अभाव में हिन्दी प्रेमाख्यानकों की वस्तु-गठन, शैली- शिल्प आदि का अध्ययन अधूरा ही रह जाता है । मूल प्रश्न शिल्प-विधि को कठिनाइयों का था । उक्त प्रसंग में हमने देखा कि शिल्प-विधि के अध्ययन की कठिनाइयों का समाधान अत्यधिक श्रम - साध्य एवं दुहरा व्यापार है । कारण इसका यही है कि शिल्पविधि पर आधिकारिक ढंग से किसी ने नहीं सोचा या कार्य किया । नये सिरे से कोई भी कार्य किया जाये उसमें कठिनाइयाँ होना स्वाभाविक है । ठीक यही बात हिन्दी - प्रेमाख्यानकों की शिल्पविधि के अध्ययन की कठिनाइयों के संदर्भ में कही जा सकती है । हिन्दी प्रेमाख्यानों का शिल्प क्या है ? इसे निर्दिष्ट करने के लिए एक कसौटी चाहिये और उसका प्रारूप यह होगा : १. कथावस्तु : मंगलाचरण, सज्जन-प्रशंसा, दुर्जन- जिन्दा, कथान्यास, कथाविस्तार, कथोद्देश्य, 'युद्धवर्णन, कन्या-प्राप्ति, पारलोकिक या इहलौकिक सुख ( आरम्भ, विकास संघर्ष और फलप्राप्ति ) । २. कथासंघटन - वस्तुवर्णन : १. नगर, वन, बाग, गिरि, ताल, सरिता, होट आदि । २. अश्व, सेना, आयुध, सिंहासन आदि । ३. सांस्कृतिक आलम्बन - संगीत, विधाएँ, धार्मिक विश्वास, अन्ध-विश्वास, आकस्मिक घटना, संयोजन आदि । ४. भाषा-शैली, कथा- शैली, दोहा-चौपाई, कड़वक, घत्ता, संधि, अध्याय आदि का विवेचन आवश्यक है । 'शिल्प' शब्द के अर्थ अथवा अर्थ-विस्तार पर प्रस्तुत प्रबन्ध के तृतीय अध्याय में मूलरूप से विचार किया जायगा । यहाँ यह कहना आवश्यक होगा कि मैं शिल्प को सिर्फ शैली नहीं मानता । शिल्प एक व्यापक शब्द है जिसमें शैली की विशेषताएँ तो आ ही जाती हैं, पर इसके अतिरिक्त कथा की गठन ( स्ट्रक्चर ), रूढ़ियाँ ( मोटिफ्स ), वस्तुवर्णन, साज
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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