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२० : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक सज्जा तथा कथाकाव्यों का पूरा रचाव भी शिल्प के अन्तर्गत आता है । मैं यहीं प्रभाव शब्द की भी व्याख्या कर देना चाहता हूँ। प्रभाव का अर्थ सीधी छाप या सादृश्य नहीं, प्रभाव को व्यापक अर्थ में ग्रहण किया गया है, इसे एक प्रकार से अपभ्रंश कथा-शिल्प का हिन्दी कथा-शिल्प के विकास में योगदान हो कहना चाहिये। इसी योगदान की भूमिका में मेरे शोध प्रबन्ध का उद्देश्य हिन्दी प्रेमाख्यानकों और अपभ्रंशं कथाकाव्यों में शिल्पगत शृंखला नियोजित करना है।
.. हिन्दी प्रेमाख्यानकों की तालिका
कृति
कृतिकार मुल्लादाऊद ईश्वरदास कुतुबन जायसी मंझन नंददास
कृतिकाल सन् १३७० ई० (७७२ हि०) , १५०१ ( १५५८ वि० सं०)
, १५०१ ( ९०९ हि०) ' , १५४० ( ९४७ हि०.) ,, १५४५ ( ९५२ हि०) ,, १५५० के लगभग ,, १५९१ ( ९९२ हि०)
आलम
१. चन्दायन २. सत्यवती ३. मृगावती ४. पद्मावती ५. मधुमालती ६. रूपमंजरी ७. माधवानल
काम-कन्दला ८. चित्रावली ९. रसरतन १०. ज्ञानदीप ११. कनकावती १२. पुहप-बरिखा १३. कामलता १४. रत्नावली एवं
उसमान पुहकर शेख नबी जान ,
,,१६१३ ई० ,, १६१६ ई०
१६१९ ई० ,,१६१८ ई० ,१६२१ ई०
, १६२२ ई०
बुद्धिसागर
"
,, १६३४ ई०
१. डा० शिवगोपाल मिश्र द्वारा संपादित एवं हिन्दी प्रचारक पुस्तकालय
वाराणसी से नवम्बर १९५७ में प्रकाशित 'मंझनकृत मधुमालती' से.