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३१० : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक
पउमसिरिचरिउ की कथानक-रूढ़ियाँ : १. मंगलाचरण-सरस्वती वंदना । २. कथा के नायक समुद्रदत्त की पूर्व भव की कथा। ३. कथानायिका पद्मश्री का अपूर्वश्री नामक उद्यान में समुद्रदत्त ___ का दर्शन और दोनों एक-दूसरे पर मुग्ध । ४. विवाहोपरान्त पद्मश्री के साथ जीवन बिताना। ५. माता का पत्र बुलाने के लिए। ६. समुद्रदत्त और उसकी पत्नी के बीच केलिपिशाच ने अन्तर :
डाल दिया। ७. पत्नी का विलाप और समुद्रदत्त का छोड़कर जाना। . ८. समुद्रदत्त का दूसरा विवाह । . ९. पद्मश्री को एक साध्वी का उपदेश। १०. सदाचरण करने पर भी पद्मश्री पर चोरी का कलंक लगा। ११. अंत में तपस्या द्वारा मोक्षलाभ । भविसयत्तकहा की कथानक-रूढ़ियाँ : . . १. मंगलाचरण-सज्जन-दुर्जन-प्रशंसा। - । २. धनपाल सेठ और उसकी पत्नी पूत्राभाव से चिन्तित । ३. मुनि के आशीर्वाद से समय पर पुत्ररत्न की प्राप्ति । . ४. धनपाल का दूसरी शादो करना। ५. पहली पत्नी और भविष्यदत्त की उपेक्षा । ६. दूसरी पत्नी से बंधुदत्त उत्पन्न हुआ। ७. दोनों पुत्रों का ५०० व्यापारियों के साथ देशान्तर-भ्रमण
पर जाना। ८. समुद्र में तूफान का आना और बंधुदत्त का भविष्यदत्त को
धोखा देकर तिलक द्वीप पर छोड़ जाना। ९. भविष्यदत्त का जनशून्य नगरी में पहुँचना। १०. वहाँ अतीव सुन्दरी कन्या के दर्शन । ११. एक राक्षस द्वारा दोनों का विवाह और १२ वर्ष तक साथ
साथ रहना।
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