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हिन्दी प्रेमाख्यानकों, अपभ्रंश कथाकाव्यों के शिल्प का तुलनात्मक अध्ययन : ३०९ विवेचित हिन्दी प्रेमाख्यानकों की कथानक-रूढ़ियों का भी अध्ययन उसी अध्याय में किया गया है। यहाँ प्रश्न अपभ्रंश कथा-काव्यों में प्रयुक्त कथानक-रूढ़ियों का एवं उनके प्रभावक्षेत्र दिखलाने का है। लगभग वे सारी-की-सारी कथानक-रूढ़ियाँ जिनका विवरण हम तृतीय अध्याय में दे चुके हैं-अपभ्रंश काव्यों में विद्यमान हैं। लोकक्षेत्र अथवा लोककथाओं के प्रभाव से कतिपय रूढ़ियाँ भिन्न भी हो सकती हैं। जिन अपभ्रंश काव्यों के कथानक हम पीछे लिख चुके हैं, क्रमशः उन्हीं की कथानक-रूढ़ियाँ यहाँ प्रस्तुत की जा रही हैं। लीलावईकहा की कथानक-रूढ़ियाँ : १. मंगलाचरणादि। २. कथा का नायक राजा है। ३. एक अन्य राजा विपुलाशय की पुत्री का गंधर्वकुमार से प्रेम
और गन्धर्व विवाह। ४. पिता ने गन्धर्वकुमार को राक्षस होने का शाप दिया। ५. कुवलयावली का आत्महत्या का असफल प्रयास । ६. सखी सिद्धकुमार का पता लगाने मलय पर्वत पर गई । ७. माधवानिल को उसका शत्रु पाताल लोक ले गया। ८. दोनों सखियों ने इष्टसिद्धि के लिए भवानी-पूजन का निश्चय
किया। ९. कथा की नायिका लीलावती सिंहल द्वीप की राजकुमारी।
१०. लीलावती सातवाहन के चित्र को देखकर मोहित हुई... चित्रदर्शन। ११. सातवाहन को साम्राज्य-विस्तार की इच्छा और सिंहल को
प्रस्थान । १२. विजयानन्द दूत को सिंहल भेजा-नौका मार्ग में टूट गई। १३. तट पर उसे नग्न पाशुपत के दर्शन । १४. लीलावती की विवाह करने की शर्त कि उसकी सखो के प्रिय
के मिल जाने पर वह विवाह करेगी। १५. शर्त का पूरा होना और विवाह का सम्पन्न होना ।