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३०८ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक
पुहकर कवि के रसरतन में सेनाप्रयाण के समय निम्न प्रकार के बाजों का उपयोग होता था : तहा सूर पयान निस्सान बाजै । मनो मेघ भादो महा नाद नाजै । बजे दुंदुभी ढोल भेरी मृदंगा। सुनै सोर पाताल मध्ये भुजंगा ॥ १९६ ॥ बजै बांसुरी संष सहनाइ तूरं । भये सब्द दिग्पाल के कर्म पूरं। ... भई पंच हज्जार दुंदुभी धुकारं। उ7 नीर पाताल चलि वारपारं ॥ १९७॥
-विजय० खंड, पृ० १०२-३. जायसी ने पदमावत में लिखा है कि युद्ध का ऐसा दृश्य होने पर भो राजा के हृदय में हार न थी! उसको आज्ञा से राजद्वार के ऊपरी भाग में अखाड़ा सजाया गया। सामने ही जहां शाह उतरा हुआ था, उसके ऊपर नाच का अखाड़ा जुड़ा था। जन्त्रों में पखावज और आउज आदि : बाजे बज रहे थे । वे वाद्य इस प्रकार थे :
जंत्र पखाउझ आउझ बाजा। सुरमंडल रबाब भल साजा ॥ बीन पिनाक कुमाइच कही । बाजि अंबिरती अति गहगही ॥ चंग उपंग नागसुर तुरा । महवरि बाज बंसि भल पूरा॥ हरुक बाज डफ बाज गंभीरा। औ तेहि गोहन झांझ मंजीरा॥ तंत बितंत सुभर घनतारा । बाहिं सबद होइ झनकारा॥
जस सिंगार मन मोहन पातर नांहि पांच । पातसाहि गढ़ छेका राजा भला नांच ।।
-पदमावत, पृ० ५६२. रणवाद्यों अथवा वाद्यों का विवरण हिन्दी प्रेमाख्यानक छिताईवार्ता (प० ११९ ), रसरतन ( पृ० ३८६ ) आदि में भी देखा जा सकता है। अपभ्रंश कथाकाव्यों एवं हिन्दी प्रेमाख्यानकों के संक्षिप्त वस्तुवर्णन की तुलनात्मक स्थिति से यह स्वीकार करना पड़ता है कि हिन्दी प्रेमाख्यान अपने पूर्ववर्ती साहित्य से पूर्णरूपेण अनुप्राणित ही नहीं हुए अपितु उन्हीं के विकसित रूप हैं। मोटिफ-अभिप्राय
मोटिफ ( अभिप्राय ), कथा-अभिप्राय या कथानक-रूढ़ि को परिभाषा आदि का प्रश्न प्रबन्ध के तृतीय अध्याय में हल किया जा चुका है।