________________
हिन्दी प्रेमाख्यानकों, अपभ्रंश कथाकाव्यों के शिल्प का तुलनात्मक अध्ययन : ३०७
युद्ध-वाद्य-वर्णन ___ जब सेना युद्ध करने के लिए प्रस्थान करती थी, नगारा, भेरी, तुर्य, नोसान, ढोल आदि वाद्यों का वादन होता था। युद्ध-वाद्यों के विभिन्न नाम अपभ्रंश काव्यों में तथा उसी को परम्परा में हिन्दी प्रेमाख्यानों में भी उल्लिखित मिलते हैं। आचार्य सोमदेव ( १०वीं शती) के यशस्तिलक में विभिन्न प्रसंगों में तेईस प्रकार के वादितों का उल्लेख है : ___ शंख, काहला, दुंदुभी, पुष्कर, ढक्का, आनक, भम्भा, ताल, करटा, त्रिविला, डमरुक, रुजा, घंटा, वेणु, वीणा, झल्लरी, बल्लकी, पणव, मृदंग, भेरी, तूर, पटह और डिण्डिय।
पृथ्वीचंद्रचरित में निम्नोक्त वाद्ययन्त्रों का उल्लेख है :
वीणा, विपंचो, बल्लको, नकुलोष्ठी, जया, विचित्रिका, हस्तिका, करवादिन, कुब्जिका, घोषवती, सारंगी, उदंबरी, त्रिसरी, झंषरी, आलविणि, छकना, रावणाहत्था, ताल, कंसाल, घंट, जयघंट, झालरि, उंगरि, कुरकचि, कयरउ, घाघरी, द्राक, डाक, ढाक, चूंस, नीसाण, तावंकी, कडुआलि, सेल्लक, कांसी, पाठी, पाऊ, सांष, सींगी, मदन, काहल, भेरी,
धंकार और तरवार, मृदंग, पटु, पडह प्रमुख वादित्र वाज्यां । ये हैं इगुण.: पंचास भेद वाजित्रों के नाम | •
• स्वयंभू ने सैनिक बाजों का वर्णन इस प्रकार किया है : • पड़-पडह-सङ्ग-भेरी-रवेण। कंसाल-ताल-दडि-रउरवेण ॥ . कोलाहल-काहल-णीसणेण । पच्चविय-मुउन्दा-मीसणेण ॥
धम्मुक्क-करड-टिविला-धरेण । झल्लरि-रुञ्जा-डमरुअ-करेण ॥ पडिढक्क-हडुक्का-वज्जिरेण । घुम्मन्त-मत्त-गय-गज्जिरेण ॥ तण्डविय-कण्ण-विहणिय-सिरेण । गुम-गुम-गुमन्त-इन्दिन्दिरेण ॥ पक्खरिय - तुरय - पवणुब्मडेण । धूवंत-धवल-धुअ-धयवडेण ॥ मण-गमणामेल्लिय-सन्दणेण । जम-वरुण-कुवेर-विमद्दणेण ॥ वन्दिण-जयकारुग्घोसिरेण । सुर-वहुअ-सत्थ-परिओसिरेण ॥ __घत्ता-सहं सेण्णेण सहइ दसाणणु णीसरिउ। छण-चन्दु व तारा-णियरें परियरिउ॥
-पउमचरिउ, ६३.१. १. डा० गोकुलचन्द्र जैन, यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन, प० २२५.