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हिन्दी प्रेमाख्यानकों, अपभ्रंश कथाकाव्यों के शिल्प का तुलनात्मक अध्ययन : ३०१
अश्व-वर्णन
हिन्दी प्रेमाख्यानकों में घोड़े-हाथियों के जो चित्रण किये गये हैं वे भो अपनी पूर्व परम्परा से शृंखलाबद्ध हैं। वर्णरत्नाकर में अश्वों के निम्न भेद किये गए हैं :
हरिअ, महअ, मांगल, कुही, कुवाल, कओस, उरज, नील, गरुड, पीअर, राओट, दोरो, उवाह, वलिआह, सेवाह, कोंकाह, केयाह, हराह, षोराह, रोरिह.."
माणिक्यचन्द्रसूरि ने अश्वों की जातियों के विषय में एक लम्बी तालिका पृथ्वीचन्द्रचरित में दी है :
तरल तेजी तरंवारिया। किस्या ते-- हयाणा, मयाणा, कुंकणा, कास्मीरा, हयठाणा, पइठाणा, सरसईया, सोंधउरा, केकाइला, जाइला, उत्तर-पंथा, ताजा, तेजो, तोरक्का,काच्छूला, कांवोजा, भाडेजा, आरट्ट, वाल्हीकज, गांधार, चांपेय, तैत्तिल, त्रैगर्त, आर्जनेय, कादंरेय, दरद, सौवीर. क्षेत्रशुद्ध, प्रमाणशुद्ध, चपलं, सरल, तरल, उंचासणा, परीक्षणा, जोयडं सहई, बांकी द्रेठी, समरपूठि, छोटे काने, सधइ बानि, सइरनी • ललवलाई, नीघटनी कलाई, पूछतणी आयताई, पलाणतणी सामंत्राई, बांकी तुंडवालि, बहुली पेटवालि, मुहिरुधा, आसणि सूधा, हसमंत, हयहेवारवि, अंबर वधिर करता।
- विद्यापति ने कीतिलता में कीर्तिसिंह को सेना के घोड़ों की
जाति और उनकी चालों तथा शरीर-गठन के विषय में इस प्रकार -लिखा है :
अनेक वाजि तेजि ताजि साजि साजि आनिआ॥ परक्कमेहि जासु नाम दीप दीपे जानिआ॥ विसाल कन्ध चारु वन्ध सत्ति अरू सोहणा ॥ तलप्प हाथि लांघि जाथि सत्तु सेण खोहणा ॥ सुजाति शुद्ध कोहे कुद्ध तोरि धाव कन्धरा॥ विमुद्ध दापे मार टापे चूरि जा वसुन्धरा ॥ ४.२९-३६.