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३०० : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक
कामें कामिणि भणिय हसेप्पिणु-आदि।
-णायकुमारचरिउ, पृ० ४८-४९. हिन्दी प्रेमाख्यानकों में कई स्थानों पर चौरासी हाटों का उल्लेख अथवा संकेत मिलता है। प्रद्युम्नचरित ( १४११ वि० सं० ), सधार अग्रवालकृत में इस प्रकार लिखा है :
इक सौं वने धवल आवास । मठ मंदिर देवल चउपास ।
चौरासी चौहट्ट अपार । बहुत भांति दीसइ सुविचार ॥१७॥ कविवर पुहकर ने रसरतन में जो हाटों का वर्णन किया है उसकी तुलना पूर्ववर्ती साहित्य के हाट-वर्णनों से की जा सकती है :
पठंबर मंडित सोभित हाट । रच्यो जनु देव सुरप्पति बाट ॥.. कहं नग मोतिय बेचत लाल । करें तहं लच्छिय मोल दलाल ॥ . कहूँ गर्दै कंचन चार सुनार । कहूँ नव नाटिक कौतिक हार ॥ कहूँ पट पाट बनें जरतार । कहूँ हय फेरत हैं असवार ॥ कहँ ग्रहैं मालिनि चौसर हार । कहूँ तिसवारत हैं हथियार ॥ कहँ वरई कर फेरत पान । कहूँ गुनी गाइन साजत गान ॥ कहँ पढ़े पंडित वेद पुरान । कहूँ नर तानत बान कमान । कहूँ गनिका गनरूप निधान । कहूँ मुनि ईस करै तप ध्यान ॥ चल्यौं नगरी सब देखत सूर । कहूँ मृगमछे सुगंध कपूर ॥ रहै इक नागरि नैन निहार । चलै इक पाट गवाष उधार ॥
-चंपा० खंड, १४६-१५३. इसी प्रकार शृङ्गार-हाट और फूलहाट का चित्रण जायसी के पदमावत ( ३७, ३८,३९ ) में देखा जा सकता है। चन्दायन में गोवर नगर के सुगन्धि-बाजार और वहाँ की खरीददारी का वर्णन देखिए : .
सुनो फूल हाट सब फूला। जीउ विमोह गा देखत भूला ॥ अगर चन्दन सब धरा बिकाने । कुकु परिमल सुगंधि गंधाने॥ बेनां और केवर सुहावा। मोल किये (पर) महंक (सुंघावा) ॥ पान नगरखण्ड सुरंग सुपारी। जैफर लौंग बिकारी झारी॥ दौनां मरवा कुन्द निवारी। गूदइ हार ते बेचहिं नारी॥ .
खांड चिरौंजी दाख खुरहुरी, बैठे लोग बिसाह । हीर पटोर सों भल कापड़, जित चाहे सब आह ॥
-चन्दायन, २८, पृ० ९२.