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________________ हिन्दी प्रेमाख्यानकों, अपभ्रंश कथाकाव्यों के शिल्प का तुलनात्मक अध्ययन : २९९ हाट-वर्णन हाटों का वर्णन विद्यापति की कोर्तिलता, वर्णरत्नाकर, पृथ्वीचन्द्रचरित, मानसोल्लास और कादम्बरी आदि में जिस तरह हुआ है उसी को हिन्दी प्रेमाख्यानकों ने स्वीकार किया है । पृथ्वीचन्द्रचरित में चौरासी हाटों का उल्लेख इस प्रकार है : सोनी हटी, नाणावर हटी, सौगंधिया हटी, फोफलिया, सूत्रिया, सड़सूत्रिया, घोया तेलहरा, दन्तरा, वलीयरा, मणीयार हटी, दोसी, नेस्ती, गंधी, कपासी, फडीया, फडीहटी, एरंडिया, रसणीया, प्रवालीया, बांबहटा, सांषहटा, पीतलगरा, सोनार, सोसाहडा, मोतीप्रोया, सालवी, मोगारा, कुंआरा, चूनारा, तूनारा, कूटारा, गुलीयाल, परीयटा, द्यांची, मोची, सुई, लोहटियाँ, लोढारा, चित्रहारा, सूतहारा, कागलीया, मद्यप हटी, वेश्या, पण गोला, गांछा, भाडभुंजा, वीवाहडा, त्राम्बडीया, भइंसायत, मलिननापित, चोषानापित, पाटीवणा, त्रांगडीया, वाहीत्रा, काठवीठीया,. चावठीया, सूषडीया, साथरीया, तेरमा, वेगडीया, वसाह, सान्थूआ, पेरुआ, आटीआ, आलीआ, दउढीआ, मुंजकूटा, सरगस, भरथारा, पीतल: हडा, कंसारा, पत्तसागीआ, षासरीआ, मंजीठीया, साकरीया, सावूगर, लोहार, सूत्रहार, वणकर, तम्बोली, कन्दोई, बुद्धि हटी और कुत्रिकापण हटी। इन हाटों में वेश्या -हाट ( बाजार ) का चित्रण अपभ्रंश काव्य णायकुमारचरिउ में स्वाभाविक ढंग से किया गया है : वेसावाड झत्ति पट्टउ । मयरकेउ पुरवेसह दिट्ठउ । hi fade faas fo afड्ढय । णीलालय ए एण ण कढिय | का वि वेस चितइ कि हारें । कंठुण छिण्णउ एण कुमारें । का वि वेस अहरग्गु समप्पइ । झिज्जर खिज्जइ तप्पइ कंपइ । का वि वेस रइसलिलें सिंचिय । वेवइ वलइ घुलइ रोमंचिय । घत्ता - ता वीणाकलरवभासिणिए देवदत्तए रायविलासिणिए । हियउल्लए कामदेउ ठविउ कयपंज लिहत्थे विष्णविउ ॥ १. प्राचीन गुर्जर काव्यसंग्रह - पृथ्वीचन्द्रचरित, पू० ९५.
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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