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________________ २९८ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक उस समय के प्रासादों में चित्रशाला, प्रमदवन, पुष्पवाटिका, कृत्रिमनदी, क्रोडाशैल, धारागृह, यंत्रव्यजन, शृंगार-संकेत, माधवी-मंडप, विश्रामचौरा आदि होते थे। कीर्तिलता में उसका उल्लेख इस प्रकार है: . . प्रमदवन, पुष्पवाटिका, कृत्रिमनदी, क्रीडाशैल, धारागृह, ... यन्त्रव्यजन, शृंगारसंकेत, माधवीमंडप ॥ २.२४४. विश्रामचौरा, चित्रशाली, खट्वा-हिंडोल, कुसुमशय्या, प्रदीपमाणिक्य, चन्द्रकान्तशिला । चतुस्सम पल्लवकरो परमार्थ"॥ .. –२.२४४-४६ रसरतन में सूरसेन की चित्रसारी का वर्णन इस प्रकार किया गया है : सखि रहइ भूमि मृग पहुंमिपाल। अति रुचिर रुचितवरं चित्रसाल ॥ राखिय सुगंध भरि करि वनाइ। अंगनह मध्यि सरवर सुभाइ॥ गुंजरत मूंग रसवास लोन। मृगवाल नाद स्वादह अधीन ॥ परजंक मंड तहं चित्त चारि। परवार हेतु जनु अमर नारि॥ -चंपा० खंड, २२३-२५. चित्रसाल चित्रित बहुरंगा । उपजतु निरषि सुषद सुष अंगा॥ विविध चित्र अनवन विधि साजे । जल थल जीव जंतु सब राजे ॥ लिखो बहुत लीला करतारा। चित्र चारु दसउं अवतारा ॥ ब्रज विनोद बहु भांतन चीन्हा । राम चरित्र चारु सब कीन्हा॥ सोरह सहस अष्ट पटरानी। चित्री इंद्र धरनि इंद्रानी॥ नायक नाथ लिषे सुर ग्यानी । रुकमिन आदि आठ पटरानी ॥ रति रतिनाथ चित्र पुनि कीन्हा । ऊषा हित अनुरुध मनु लीन्हा॥ चित्रित सकल प्रेम रस प्रीति । माधो कामकन्दला रीती॥ अग्निमित्र यौरावत धाता । भरथरि प्रेम पिंगला राता॥ -स्वयंवर खंड, २३०--२३४ आदि.
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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