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हिन्दी प्रेमाख्यानकों, अपभ्रंश कथाकाव्यों के शिल्प का तुलनात्मक अध्ययन : २९७ - उक्त अपभ्रंश एवं हिन्दी प्रेमाख्यानकों के बाग-बगीचों के वर्णन में * अधिकतम साम्य है। अतः यह कहने में संकोच नहीं होना चाहिये कि यह अपभ्रंश कथाकाव्यों के शिल्प का ही प्रभाव है। इसी संदर्भ में पृथ्वीराजरासो के एक राजोद्यान का उद्धरण भी देखा जा सकता है :
श्री खंड झंड वासयं । गुलाब फूल रासयं । जु चंपकं कदंवयं । षजूरि भूरि अंवयं ॥ सु अन्ननास जोरयं । सतूतयं जमीरयं ॥
अषोट सेव दामयं । अवाल वेलि सामयं ॥ . ज श्रीफलं नरंगयं । संवह स्वाद होतयं ॥
चवंत मोर वायकं । मनो सगोत गायकं ॥ चित्रशाला-वर्णन .
चित्रशाला का वर्णन हिन्दी प्रेमाख्यानकों में अपने पूर्ववर्ती साहित्य के अनुरूप ही हुआ है। जिनसेनकृत आदिपुराण में वर्णित चित्रशाला को विशेषताओं.का डा० नेमिचन्द्र शास्त्री ने इस प्रकार उल्लेख किया है :
. १. चित्रशाला बहुत ही मनोज्ञ, स्वच्छ और सुन्दर होती थी। . २. चित्रशाला को भित्तियां भी चित्रित रहती थीं। • ३: चित्रशाला में धर्मनायकों, पुराणपुरुषों, ऐतिहासिक व्यक्तियों . एवं शलाका पुरुषों के चित्र टंगे रहते थे।
४. चित्रशाला में दर्शकों को आने-जाने की पूर्ण स्वतन्त्रता . रहती थी।
५. चित्रशाला में विनोदार्थ चित्रों का अंकन भी होता था।
६. प्रतीक चित्रों और व्यक्ति चित्रों का भी आलेखन किया जाता था। ___७. चित्रशाला में चित्रपट, काष्ठचित्र, पाषाणचित्र आदि रसमय चित्रों के साथ धूलिचित्र भी उपलब्ध होते थे।'
१. डा० नेमिचन्द्र शास्त्री, आदिपुराण में प्रतिपादित भारत, पृ० ३१२.