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________________ २९६ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक नारिंग जंबु छुहारी दाख, पिंडखजूर फोफिली असंख । जातीफल इलायची लवंग, करणा भरणा कोए नवरंग ॥ काथु कपित्थ वेर पीपली, हरड वहेड खिरी आविली। सिरीखंड अगर गलींदी धूप, णरहि नारि तहि ठाइ सरूप॥ जाई जहि वेल सेवती, दवणो मरुवउ अरु मालती। . चंपउ राइचंपउ मचकुंद, कूजउ वउलसिरी जासउदु॥ .. वालउ नेवालउ मंदार, सिंदुवार सुरही मंदार। .. पाडल कठपाडल घणहूल, सरवर कमल बहुतक फूल ॥ .. -जिणदत्तचरित, पृ० ५८-५९. छिताईवार्ता में भी यही परिपाटी मिलती है । एक उद्धरण देखिए : . कुसुम कुंद मचकुंद मरुवौ केव केतुकी कल्हार। गुलाल सेवती मोकरो सुन्दर जाइ। महंदी पदमाख केवरौ अतिवर्ष चंपग पाइ। जाति कूजौ जुही अति गनि रही महकाइ। सघन दाप्यौ दाख कमरख नारयंग निबवा नारि। बादम्म अंम जंभीर खारिक सघन सरवर पारि ॥ ३९९॥ कुंद खिरणी जाती फुलवादि गनत बिच्छ को जानै आदि। लौंग लाइची बेलि अनूप चंदन बन देखे महि भूप॥ ४०० ॥ रसरतन में कवि पूहकर ने वृक्षों के नामों को गिनाकर बाग-वर्णन की परम्परा से अपने को जोड़ लिया है : सुन्यो पुर मित्र बढ्यो अनुराग । बिलोकित नैन मनोहर बाग ।। रह्यो सुख संपति आनंद झेलि । घनै फुल फुलहि लसै द्रुमबेलि ॥ सदा फर दाडिम सोभित अंब। बनै वर पीपर नीम कदंब ॥ महारंग नारंग निब्बू संग। लता जनु अमृत सोंचि लवंग ॥ जमीरी गलग्गल श्रीफल सेव । फले कदली फल चाहिं देव ॥ परिनि षारक ताल तमाल । सुधा सम दाख अनूप रसाल ॥ चमेलिय चंपक बेल गुलाब । वंधूप सरूपित सोभित लाल ॥ -चंपा० खंड, १००-१०३, पृ० १४१.
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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