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________________ हिन्दी प्रेमाख्यानकों, अपभ्रंश कथाकाव्यों के शिल्प का तुलनात्मक अध्ययन : २८९ देखकर करकंडु ने अपनी कमान से छोटी-छोटी गोलियां मारनी शुरू कीं और उसे पत्रहीन कर दिया । पहले लिखा जा चुका है कि जायसी ने भी सिंहलद्वीप को श्रेष्ठतम द्वीप कहा है । यदि जायसी के वर्णन और इसकी तुलना करें तो लगेगा कि जायसी ने उसी पैटर्न पर सिंहल द्वीप का वर्णन किया है । जायसी को सिंहलद्वीप के समान अन्य कोई द्वीप नहीं मिला : सब संसार पर मैं आए सातौं दीप । एकौ दीप न उत्तिम सिंघल दीप समीप ॥ - पदमावत, पृ० २५. भविसयत्तका में एक नगर का वर्णन इस प्रकार किया है : तहि गयउरु गाउं पट्टणु जणजणियच्छरिउ । णं गयणु मुवि सग्गखंडु महि अवयरिउ ॥ १.५. अर्थात् वहाँ गजंपुर नाम का नगर है जिसने मनुष्यों को आश्चर्य में डाल दिया है । मानों गगन को छोड़कर स्वर्ग का एक खंड पृथ्वी पर उतर आया हो । स्वयंभू कवि ने अपने महाकाव्य में महेन्द्रनगर का जो वर्णन किया है उसकी तुलना जायसी के सिंहलनगर वर्णन से की जा सकती है । स्वयंभू के महेन्द्रनगर का वर्णन : गयगंगणे थिएण, विज्जाहर-पवरणरिन्दहो । णाइ स- णिच्चरेण, अवलोइउ णयरु महिंदहो ॥ ११ ॥ चउ-दुवारु चउ-गोअरु चउ-पायारु- पंडरं । गयण- लग्ग पवणाहय-धयमालाउरं पुरं । गिरि - हिन्द - सिहरे रमाउले । रिद्धि-विद्ध-धण- घण्ण-संकुले । तं णिएवि हणुयेण चितियं । सुरपुरं किमिदेण धत्तियं ॥ — स्वयंभूरामायण, ४६.१-२. १. पदमावत, संपा० वा० श० अग्रवाल, सिंहल द्वीप-वर्णन, पृ० २५. १९
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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