SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 301
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हिन्दी प्रेमाख्यानकों, अपभ्रंश कथाकाव्यों के शिल्प का तुलनात्मक अध्ययन : २८७ - पुहकरकृत रसरतन में भी चंपावती नगरी का वर्णन आया है । बहुत कुछ विशेषताएँ और स्थिति करकंडुचरिउ की चंपानगरी से मिलतीजुलती हैं। रसरतन की चंपावती नगरी की भौगोलिक स्थिति इस प्रकार है : गुज्जर नगर उदधि के तोरा। अचवहिं कप सरोवर नीरा॥ नगर अनूप रम्य सुषदाई। मनौ अवनि अमरावति आई॥ -चंपा० खंड, ८, पृ० १३२. करकंडुचरिउ की चंपानगरी सुमनोहर है और रसरतन को चंपानगरी भो चित्त को हरने वाली है : नागर चतुर सुजान नगर भाव देष्यो तहां। मन जान्यौ उन्मान चित्त हरन चंपावती॥ -वही, २०, पृ० १४०. यह नगरी भी अनेक गुणों से युक्त है : उपवन सुंदर सुखद अनूपा । गुन गाहक सोभित सब कूपा॥ -वही, ९१. : वहाँ जिनमंदिर की शोभा का वर्णन है तो रसरतन में शंकरजी के .मन्दिर की : . थंभ सौपन्न मुत्ती झलक्कै । देषि गंधर्ष मुनि देव थक्कै ॥ उच्च उत्तंग सोभा न आवै। सिषिर कैलास उपमान पावै ॥ नमंडियौ नाद. गंधार सोहै। हरत षल पास जब नैन जोहै ॥ . -वही, १५६-५७, पृ० १४५. ..' द्वीप-वर्णन ... करकंडुचरिउ के सिंहल-द्वीपवर्णन को तुलना जायसीकृत पदमावत में वर्णित सिंहल-द्वीपवर्णन से की जा सकती है। वर्णन-परिपाटी एक ही है परन्तु विस्तार में अन्तर आ जाना स्वाभाविक है। करकंडुचरिउ में सिंहल-द्वीपवर्णन इस प्रकार है: ता एकहि दिणि करकंडएण। पुणु दिण्णु पयाणउ तुरियएण॥ गउ सिंहलदीवहो णिवसमाणु ।
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy