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हिन्दी प्रेमाख्यानकों, अपभ्रंश कथाकाव्यों के शिल्प का तुलनात्मक अध्ययन : २८३
स्थित अतीव सून्दर कन्या से करता है। पूनः गजपुर के राजा की युद्ध में सहायता करता है। विजयी होने पर राजा सुमित्रा नामक अपनी कन्या से भविष्यदत्त का विवाह कर देता है । णायकुमारचरिउ का नायक नागकुमार चौदह कुमारियों का विभिन्न स्थितियों में वरण करता है। प्रायः ही यह अपभ्रंश काव्यों के नायकों को चरित्रगत विशेषता है। इन सब में नायक सब कुछ अपनी असाधारण शक्ति द्वारा ही प्राप्त करता है। हिन्दी प्रेमाख्यानकों के नायकों में भी बहविवाह की बात देखने में आती है। दामोकृत लखमसेन-पद्मावती कथा का नायक दो विवाह करता है। मधुमालती कथा में नृपति कंवर कर्ण और पद्मावती की अन्तर कथा आती है, उसमें कर्ण को ६१ शादियां करते दिखाया गया है । इसी प्रकार रसरतन, चन्दायन आदि के नायकों को भी एकाधिक रानियां थीं। अपभ्रंश कथाकाव्यों.के नायकों की भांति ही हिन्दी प्रेमाख्यानकों में भी नायकों के चरित्र का विकास दिखाया जाता है । कथोद्देश्य __ कथोद्देश्य की दृष्टि से अपभ्रंश एवं हिन्दी प्रेमाख्यानकों में समानता दष्टिगत होती है। सर्वालंकारविभूषित राज्यकन्या की प्राप्ति संस्कृत कथाओं का ही उद्देश्य नहीं था बल्कि अपभ्रंश और हिन्दी में भी इसे एक • महत्त्वपूर्ण कथोद्देश्य माना गया। हिन्दी कवियों की प्रेमकथाओं में ".सिंहल की पद्मिनी का अनिर्वचनीय आकर्षण बार-बार चित्रित हुआ है।
जायसी के पदमावत में पद्मावती को सिंहल की राजकुमारी बताया गया है। सिंहल की राजकुमारियों को लेकर कथानक गढ़ने की प्रथा रूढ़ हो
चुकी थी। कौतूहलकृत लीलावईकहा, भविसयत्तकहा, करकंडुचरिउ, .. जिनदत्तचरित आदि में सिंहल की राजकुमारियों को लेकर कथाएं मिलती हैं। अपभ्रंश कथाकाव्यों एवं हिन्दो प्रेमाख्यानकों के कथानकों में भावसाम्य तो प्रायः देखा जाता है। अपभ्रंश प्रेमाख्यानकों में कन्याप्राप्ति के फल के अतिरिक्त कुछ और भी लक्ष्य है। अर्थात् काव्य की समाप्ति नायक को कन्याप्राप्ति कराने के बाद ही नहीं कर दी जाती। इस बात में अपभ्रंश के काव्यों ने संस्कृत लक्षणकारों की मान्यताओं का पालन नहीं किया। जैसा कि अपभ्रंश कथाकारों पर आरोप किया जाता रहा है कि वे साम्प्रदायिक भावनाओं के वशीभूत थे और धर्मविशेष के प्रचार के लिए काव्य लिखते थे। किसी हद तक बात सच हो सकती है