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________________ २८२ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक करकंडुचरिउ में करकंडु भी सिंहल की राजकुमारी रतिवेगा से विवाह करता है । कहने का तात्पर्य यह कि उन दिनों सिंहल प्रदेश की स्त्रियों के सौन्दर्य की निजंधरी कथाएं प्रचलित थीं । हिन्दी प्रेमाख्यानक पदमावत का ऐतिहासिक नायक रतनसेन भी सिंहल की पद्मिनी के वियोग में मारा-मारा फिरता है । सिंहल की राजकुमारियों को लेकर हिन्दी - प्रेमाख्यानकों से पूर्व अनेक रचनाएं हुई । चरित्रों की मुख्य विशेषताएं नायकों के चरित्र को ऊंचा उठाने के लिए नायक को अतिशय परामी सिद्ध किया जाता है । जो कार्य कोई व्यक्ति कठिनाई से भी नहीं कर सकता उसे इन कथाओं का नायक निमेष मात्र में कर डालता है ।. प्रायः हो अपभ्रंश कथानायकों के चरित्र में यह अभूतपूर्व प्रतिभा दिखाई पड़ती है । करकंडुचरिउ में करकंडु सिंहल से रतिवेगा के साथ समुद्री मार्ग से लौट रहा था तो एक भीमकाय मच्छ ने उनकी नौका पर आक्र मण किया। करकंडु मल्ल- गांठ बांधकर समुद्र में कूद पड़ा और मच्छ को मार डाला । इस प्रकार णायकुमारचरिउ में एक मदोन्मत्त हाथी को ( जो किसी के वश में नहीं आ रहा था ) नागकुमार ने पलभर में मार गिराया । यह सब नायक को पराक्रमी सिद्ध करने के लिए किया जाता था । यही बात हिन्दी प्रेमाख्यानकों के नायकों के चरित्र में देखने को मिल जायेगी। किसी में नायक को राक्षस को परास्त करना पड़ता है तो किसी में योगी वेश धारण कर भटकना पड़ता है। कहने का तात्पर्य यह कि अपभ्रंश के काव्यों में नायकों के चरित्रोत्थान के लिए जो प्रक्रियाएं अपनाई गई हैं ठीक वे ही अथवा उनसे मिलती-जुलती बातें हिन्दी प्रेमाख्यानकों के पात्र-पात्राओं के चरित्र में देखने को मिल जाती हैं । अपभ्रंश चरितनायकों में एक विशेषता और पाई जाती है वह यह कि वे एकाधिक नारियों से परिणय करते हैं । कहीं-कहीं वे कुमारियों द्वारा बाध्य कर दिये जाते हैं जिससे उन्हें परिणय के बाद ही मुक्ति मिलती है । जैसे करकंडु ने समुद्र में मच्छ को तो मार डाला परन्तु उसे एक विद्याधरी हरण करके ले गई। जब उसने उससे परिणय कर लिया तब करकंडु उसको साथ लेकर रतिवेगा से मिल सका। इसी प्रकार भविसयत्तकहा में कथा का नायक प्रथम शादी एक सुनसान नगर में
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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