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हिन्दी प्रेमाख्यानकों, अपभ्रश कथाकाव्यों के शिल्प का तुलनात्मक अध्ययन : २७१
शक्ति-संगठन में एकत्रित नहीं हो सके। परिणामस्वरूप फूट दिनों दिन , बढ़ती गई। राजनैतिक उथल-पुथल में क्षत्रिय वंशजों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। प्रारम्भिक समय में तो ये लोग शक्तिशाली और नीतिनिपुण साबित हए। आगे चलकर जैसे-जैसे आपसी मतभेद बढ़ते गए वैसेवैसे शक्ति क्षीण होती गई और मुसलमानों के आक्रमणों का जवाब देने में असमर्थ होकर विलासप्रिय जीवन बिताने के आदो हो गए। ___यों महमद गजनवी का भारत पर प्रथम आक्रमण १००० ई० में हुआ। फिर भी मुसलमानों को भारत पर पूरी तरह आधिपत्य जमाने में कई शताब्दियां लगी थीं। परन्तु वे निरन्तर प्रयत्नशील रहे। १२वीं शताब्दी में पृथ्वीराज चौहान ने मुहम्मद गौरी से टक्कर ली। परन्तु क्षत्रियों को आपसी फूट के कारण कन्नौज के राजा जयचन्द ने पृथ्वीराज का साथ नहीं दिया। अतः पृथ्वीराज को अन्ततः हार खानी पड़ी और दिल्ली गौरी के हाथ पहुंच गई। धीरे-धीरे उसने मध्यभारत को भी हस्तगत कर लिया। इन्हीं सब परिस्थितियों में भारत यवनों के अधीन हुआ। अस्तु । भाषागत स्थिति ___ आक्रमणों और राजनीतिक उथल-पुथल के समय भी साहित्यिक रचनाएं होती रहीं। इनकी भाषा के सम्बन्ध में डा० सुनीतिकुमार चाटुा ने लिखा है कि 'तुर्की विजय के पहले भारतीय चालू या कथ्य बोलियों में सबसे अधिक प्रचलित यही शौरसेनी अपभ्रंश थी। उन दिनों पश्चिमी अपभ्रंश का स्थान आजकल की हिन्दुस्थानी जैसा था। पश्चिमी अपभ्रंश की उत्तराधिकारिणी कुछ अंशों में ब्रजभाषा हुई। मुसलमान आक्रमणकारियों के साथ पश्चिमी अपभ्रंश की उत्तराधिकारिणी हिन्दी . दक्षिण में भी पहुँची।"
१०वीं-११वीं शती के विदेशी आक्रमणों के समय साहित्यिक रचनाओं की भाषा पश्चिमी अपभ्रंश थी-इसका उल्लेख भी डा० चाटुा ने किया है। वे लिखते हैं कि १०वीं-११वीं शती में जब अपने मुसलमानी मजहब को साथ लिए हुए तुर्की तथा ईरानियों ने उत्तरी भारत पर आक्रमण करना एवं आधिपत्य जमाना आरम्भ किया था, उस समय राजपूज राजवंशों में साहित्यिक रचनाओं की भाषा, धार्मिक १. डा० सुनीतिकुमार चाटुा, भारतीय आर्यभाषा और हिन्दी, पृ० १८९.