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.२७० : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक
भाषा की विभिन्न विधाओं के ग्रन्थों का अरबी में अनुवाद हआ और भारतीय संस्कृति का विदेशों में प्रचार हुआ।
सम्राट हर्ष के समय में भारत की स्थिति शोचनीय नहीं थी। परन्त उनकी मृत्यु के बाद यहां के राजाओं में मतभेद बढ़ते गए और छोटे-छोटे राज्य स्थापित होने लगे। गुर्जर प्रतिहारों का प्रथम शासक नागभट्ट ( ७वीं सदी ) हुआ। इसने अरबों के आक्रमण का सामना किया। इसके वंश की शक्ति बढ़ी और वत्सराज के प्रतिनिधित्व में गुर्जर प्रतिहारों का कन्नौज पर अधिकार हो गया। इस वंश का पालों से सीमावर्ती क्षेत्रों में सदैव संघर्ष बना रहा। १०वीं शताब्दी तक आते-आते इनमें आपसी. फूट हो गई और इनकी शक्ति क्षीण हो गई। गुजरात, मालवा इनके आधिपत्य से मुक्त हो गए। १०२० ई० में गुर्जर प्रतिहारों का सज्य पूर्णतः विघटित होकर कई राज्यों में विभक्त हो गया।
जैसा कि उल्लेख किया जा चका है कि भारतवर्ष में अनेक शक्तियां उदय में आ रही थीं। आठवीं शती के प्रारम्भिक समय में बंगाल में पालवंशों के राज्य का श्रीगणेश हआ। इस वंश के राजा धर्मपाल ने दक्षिणी बिहार से लेकर बंगाल तक अपना आधिपत्य जमाकर कन्नौज को भी विजित किया। देवपाल, महीपाल आदि इस वंश के अन्य प्रमुख राजा हुए । इस वंश का ४०० वर्षों तक शासन चला और १२वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में इनका पतन हो गया। गुजरात के चौलुक्यों का शासनकाल ९६१-१२४१ ई० तक रहा। इस वंश का प्रथम शासक मूलराज था। १०२४ ई० में भीमदेव के समय में महमूद गजनवी ने भारत पर आक्रमण किया। महमूद गजनवी के गुजरात पहुंचते ही भीम भाग खड़ा हुआ और बचकर निकल गया। १०६४ ई० में भीम का पुत्र कर्ण राजा हआ। गुजरात में इस वंश के प्रमुख राजाओं में कुमारपाल ( ११४२११७३ ई० ) का शासन उल्लेखनीय है। ___ इसी समय में चौहान, चेदि, गहड़वाल, चन्देल और परमार आदि क्षत्रियों की अलग-अलग शक्तियां उभर रही थीं। ये लोग किसी एक
१. जयचंद्र विद्यालंकार, इतिहास-प्रवेश, सरस्वती प्रकाशन मंदिर, इलाहाबाद,
१९४१, के आधार पर.