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२७२ : अभ्रं पश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक
एवं शास्त्रीय भाषा संस्कृत के अतिरिक्त, पश्चिमी अपभ्रंश ही थी, जिसमें भिन्न-भिन्न प्रदेशों की स्थानीय बोलियों का प्रभाव रहता था । विशुद्ध ब्रज या नव्यभारतीय आर्य अवस्था की हिन्दी का तब तक उदय नहीं हुआ था । इन उद्धरणों से तत्कालीन भाषा एवं उस पर राजनीतिक प्रभाव का संदर्भ रेखांकित होता है । आक्रमणों की स्थिति सामान्य होने पर दोनों संस्कृतियों के मिश्रण एवं समन्वय के परिणाम सामने आये । संभवतः मुसलमान लेखक अद्दहमाण की अपभ्रंश रचना संदेश - रासक ( १४वीं शती) इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है ।
धार्मिक अवस्था
भारत में ब्राह्मण, बौद्ध और जैन धर्म तो पहले से ही स्थापित थे, उसमें इस्लाम धर्म अतिरिक्त बढ़ गया । ८ - १३वीं शती अशान्ति और परिवर्तनों की अवधि थी । विभिन्न धर्मों का कभी उत्थान और कभी पतन होता रहा । मुसलमानी आक्रमणों और उनके देवालयों, धार्मिक स्थलों के विनाश से भक्ति आन्दोलन को बल मिला। बौद्ध धर्म हर्षवर्धन के समय में ही ह्रास की ओर उन्मुख था । महायान, हीनयान दो शाखाओं के बाद बौद्ध धर्म में कई उपशाखाएं भी हो गईं । महायान में शून्यवाद और विज्ञानवाद की स्थापना हुई । बोद्ध धर्म की एक वज्रयानी शाखा हुई जिसमें मन्त्र-तन्त्र, विषय-भोग, देवपूजा आदि की रुचि के अनुसार खुली छूट मिली । सहजयानी सम्प्रदाय में भ्रष्टाचरण को कोई रोक नहीं सका। अतएव पाखण्डों को जनता अधिक दिन तक सहन नहीं कर सकी । आठवीं शताब्दी में बंगाल के पाल राज्य ने बौद्ध धर्म को प्रचारित करने में सहयोग दिया । यहीं से बौद्ध धर्म नेपाल और तिब्बत पहुँचा । भारत में बौद्ध धर्म का विकास नालन्दा और विक्रमशिला के नष्ट होने तक ही हो सका । उसकी पांच-छः पीढ़ियों बाद ही बौद्ध धर्म समाप्तप्राय हो गया ।
जैनधर्म की स्थिति लगभग सामान्य रूप से एक समान रहती आई । जैन पंचमकारों से सदैव दूर रहे अतः बौद्ध धर्म के समान उन्हें दुर्दिन नहीं देखने पड़े । इस काल के राष्ट्रकूट ( ७५३ - ९७५) और सोलंकी -. गुर्जर (९६१ - १२५७ ) राजा जैनधर्म से बहुत प्रभावित थे । फिर भी इन्होंने अपने राज्य की सुरक्षा के लिए युद्ध से कभी मुख नहीं ९. वही, पृ० १८९.
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