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________________ २६८ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक निर्माण करने में।" यही कारण है कि इस काल की तुलना विश्व के पेरिक्लिज आगस्टन तथा एलिजाबेथन युग से की गई है। राजनैतिक स्थिति ___ईसा की छठी शती आते-आते गुप्त साम्राज्य की रीढ़ टूट गयी और वह छिन्न-भिन्न हो गया। फिर भी मगध पर गुप्तों का ही राज्य रहा । सातवीं शती के आरम्भिक समय में प्रभाकरवर्धन ने उत्तरी भारत में अपनी शक्ति बढ़ाई। इसके पुत्र हर्षवर्धन ने पूनः उत्तर भारत के विघटित राज्य को संगठित किया और थानेश्वर तथा कन्नौज को भी जीत लिया। बाणभट्ट के हर्षचरित में आसाम प्रदेश के भास्करवर्मन और हर्ष को मेत्री का उल्लेख मिलता है। कहने का तात्पर्य यह है कि हर्ष ने साम्राज्य-विस्तार किया। परन्तु भारतेश्वर बनने का उसका रूप पुलकेशी द्वितीय ने तोड़ दिया और दक्षिणापथ पर उसका अधिकार न हो सका। यद्यपि भारत को राजनैतिक, धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था में दिनोदिन अस्थिरता की स्थिति आती जा रही थी तथापि हषं ने अपने शासन में स्थितियों में सुधार किया और उन्हें स्थिरता प्रदान की। इसका विवरण ह्वेनसांग के भारत-यात्रा के वृत्तान्तों में मिल जाता है। ह्वेनसांग ने सातवीं शताब्दी के लगभग सभी भारतीय राज्यों का उल्लेख किया है। वह यहाँ के शासकों से मिला भी था। हर्ष को शासन-व्यवस्था का जो परिचय उसने दिया है उसे प्रकारान्तर से भारत की मूल राजनीतिक स्थिति का भी दस्तावेज कहा जा सकता है। वह लिखता है कि 'शासन-व्यवस्था उदार सिद्धान्तों पर आधारित है। कार्यकारिणी परिषद् साधारण है। लोगों से जबर्दस्ती कार्य नहीं लिया जाता। राज्य-कर भी साधारण ही हैं । व्यापारी स्वतन्त्र रूप से अपना माल बाहर ले जाते और ले आते हैं।' हर्ष के समय को धार्मिक 1. The Hindus of that age were as successful in evolving new and bold systems of philosophy as in building large and steady vessels to carry goods over sea. -वही, पृ० १३८. 2. As the administration of the government is founded on. benign principles, the executive is simple. People are not subject to forced labour. In this way taxes on people are light. The merchants who engage in commerce come and go in carrying out their transaction. -वही, पृ० १४८.
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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