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________________ अध्याय ६ हिन्दी प्रेमाख्यानकों और अपभ्रंश कथाकाव्यों के शिल्प का तुलनात्मक अध्ययन सांस्कृतिक पृष्ठभूमि __यों तो आठवीं शती से लेकर सोलहवीं शती तक अपभ्रंश ग्रन्थों का प्रणयन होता रहा किन्तु अपभ्रंश साहित्य का समृद्धतम युग नवीं शती से तेरहवीं शती तक माना गया है।' ऐतिहासिक दृष्टि से यह राजनीतिक उथल-पुथल का समय था। किसी भी भाषा का साहित्य अपने युग की सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक प्रवृत्तियों से अपने को अछूता नहीं रख सकता। यही कारण है कि तत्कालीन युग की प्रवृत्तियों की जानकारी के लिए हम उस युग के साहित्य की छानबीन करते हैं। इतिहासकारों ने गुप्तकाल को 'स्वर्ण युग' की संज्ञा दी है। गुप्तकाल की विशेषताओं पर विचार करते हुए ए० सी० चटर्जी ने लिखा है कि गुप्तकाल कला एवं साहित्य की महान् उन्नति का समय था और उस समय में शासन समुन्नत तथा सुव्यवस्थित था। उस समय भारतीय संस्कृति का प्रचार सुदूर पूर्व एवं दक्षिण-पूर्व एशिया में भलीभांति होने लगा था। इस सन्दर्भ में प्रसिद्ध इतिहासज्ञ डा० अल्तेकर लिखते हैं कि "उस समय के हिन्दू दर्शन के नवीन एवं दढ़ प्रतिमानों का विकास करने में उतने ही सफल थे जितने कि समुद्रो मालवाहक पोतों का १. डा० हरिवंश कोछड़, अपभ्रंश-साहित्य, पृ० ३४. 2. Gupta period was a time of great activity in art, literature and...the empire was prosperous and well governed. -सतीशचन्द्र अग्रवाल, भारतीय इतिहास, इलाहाबाद, पृ० १३९ से उद्धृत.
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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