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________________ २६४ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक युद्ध की भयंकरता को देखकर मदन की स्त्री रति घबराकर आई और मदन को जिनेन्द्र की अजेयता के विषय में बतलाया। मदन से कहा कि आप सिद्धि से परिणय करके क्या करेंगे? अनेक भांति से रति के समझाने पर भी मदन नहीं माना और कहा कि यह जिनेन्द्र पहले रत्न चोरी करके ले गया, मेरे दूतों को गला पकड़कर निकाला, मेरे, . भाट का सिर मुड़वा दिया। उसने जो यह सब किया है वह मेरे लिए लज्जास्पद है। जिनेन्द्र बहत दिनों से गरजता था, आज मेरे सामने समर- . भूमि में है, उसे आज मेरी बाणवृष्टि का सामना करना पड़ेगा। इसी बीच बन्दी ने मदन को सम्यक्त्व, संयम, पंचमहाव्रत आदि के साथ जिनेन्द्रदेव को दिखाया। भाट ने जब इस प्रकार मदन की दृष्टि जिनेन्द्र की ओर खींची तो मकरध्वज को सेना जिनेन्द्र की सेना पर टूट पड़ी। मिथ्यात्व ने जो अग्निबाण छोड़े उनसे जिनेन्द्र की सेना घबड़ाकर भाग उठी। आकाश में ब्रह्मा और सुरेन्द्र ने आपस में बात-चीत प्रारम्भ को। इधर सम्यग्दर्शन ने आकर मिथ्यात्व को ललकारा। मिथ्यात्व ने बिगड़कर मूढत्रय बाणावलि छोड़ो जिसे दर्शन ने षडायतन बाण छोड़कर नष्ट कर दिया । दर्शन ने मिथ्यात्व को तत्त्वरुचि बाणों से मार दिया। यह देख इन्द्र ने ब्रह्मा से कहा कि सम्यक्त्व ने मदन को कैसा परास्त किया। अब स्वयं मोह ज्ञान और दर्शन के सम्मुख आया। मोह एवं अन्य उसके सहयोगी जिनेन्द्र के सेनानियों से परास्त हुए। __सबका मानमर्दन हो जाने पर मदन स्वयं वशीकरण आदि बाणों को लेकर जिनेन्द्र देव के सामने आया। दोनों में उत्तेजक वार्तालाप हुआ। मदन ने अपना मन-हाथी जिनेन्द्र के आगे बढ़ाया जिसे उन्होंने समभावरूप मुद्गर से चूर-चूर कर दिया। रति अपने पति को समझाने आई परन्तु उसने एक नहीं सुनी। अन्ततोगत्वा केवलज्ञान के प्रभाव से काम का बल क्षीण होने लगा। तब उसने मोह के उपदेश से २२ परीषहों को छोड़ा। करते-करते मदन मैदान छोड़कर कुपन्थों में जाकर छिप गया। देवराज इन्द्र ने ब्रह्मा से कहा कि देख लो, मदन की हार हो गई। इस प्रकार जिनेन्द्र ने केवलज्ञानरूपी आभूषण धारण किया। इस प्रकार सिद्धि रमणी का जिनेन्द्र ने परिणय किया। विवाह करने के बाद जब जिनेन्द्र क्रीड़ानिमित्त मोक्ष को गमन करने लगे तभी तपश्री ने
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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