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________________ अपभ्रंश कथा: परिभाषा, व्याप्ति और वर्गीकरण : २६३ मदन ने संज्वलन से कहा कि चूहों की सेना कभी बिल्ली के ऊपर चढ़ी है ? संज्वलन लौट आया। काम ने अपने प्रधान सेनापति और मन्त्री मोह को बुलाया और कहा कि यदि मैं जिनेन्द्र को आज नहीं जीत का तो अग्नि में जल जाऊँगा । मोह ने काम को विश्वास दिलाया कि समर में काम का कौन सामना कर सकता है। आकाश में इन्द्र आपसे भयभीत हैं, पाताल में धरणेन्द्र कम्पित हैं । जिननाथ आकाश-पाताल अथवा गिरि पर छिपे बच नहीं सकता । हमलोग जिन को जीतकर, कर सप्तव्यसन की कोठरी में डाल देंगे । मदन ने पुनः शृंगार भाट को बुला भेजा। उसके आने पर मदन ने कहा कि तू जिनेन्द्र को युद्धभूमि में लाकर मुझे दिखला दे तो तुझे बहुत पारितोषिक मिलेगा । शृंगार भाट जिनेन्द्र के पास गया और उनसे कहा कि काम के पास असंख्य योद्धा हैं अतः आप काम की सेवा स्वीकार कर सुख से रहें । सम्यक्त्व ने इतना सुनते ही शृंगार को फटकारा कि मैं मिथ्यात्व का मुकाबला करूंगा। पांच इन्द्रियों को पांच महाव्रत जीत सकते हैं। ज्ञान मोह को, शुक्ल ध्यान १८ दोषों को, सात तत्त्व सातों भयों को, श्रुतज्ञान अज्ञान को तप आश्रवकर्म को जीत , सकेगा । जिनेन्द्र ने भाट से कहा कि यदि तू अपने काम को दिखला दे तो मैं तुझे भूमि आदि दान दूंगा । भाट ने कहा कि यदि तू मेरे पोछे-पीछे • आए तो मैं एक क्षण में मदन को दिखला दूंगा तथा उसके समीप सारंग . पर आक्रमण करने वाले सिंह के समान मोह को भी दिखला दूंगा । निर्वेद को यह सहन नहीं हुआ तो भाट का सीस मुड़ाकर, नाक काटकर उसे बाहर निकाल दिया । मदन के पूछने पर भाट ने अपनी दुर्दशा का समाचार दिया । मदन बहुत उत्तेजित 'हुआ। वह वहां से समुद्र की भांति चल पड़ा। चलते समय मदनराज को सर्प की फुफकार, कौए की कांव-कांव सुनाई दी । गृद्ध ऊपर मंडराने लगे, घड़ा फूट गया, पवन के प्रतिकूल चलने आदि जैसे अपशकुन हुए । मदन अपशकुनों से स्तब्ध रह गया । उधर से जिनेन्द्र का सैन्य संचालन हुआ, उससे गिरिराज टलमला गया, समुद्र, शेषनाग आदि सभी विचलित हो गए। दोनों सेनाएं आमने-सामने जुट गईं और युद्ध होने लगा ।
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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