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२६२ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक पास संदेश भेजा कि या तो जिनेन्द्र आकर काम की सेवा करें या फिर युद्ध के लिए तैयार रहें।
दूत के चारित्रपुर पहुंचने पर जिनेन्द्र की सभा में उपस्थित संज्वलन ने आज्ञा लेकर राग-द्वेष को जिनेन्द्र के सम्मुख उपस्थित किया । काम के दूतों ने जिनेन्द्र से कहा कि आप सिद्धि रमणी से विवाह का विचार छोड़कर काम की सेवा करें जिसमें कल्याण है-यही काम का आदेश है। काम की सेवा से सभी भोगसामग्री-सुख उपलब्ध होगा। जिनेन्द्र' ने काम के दूतों से स्पष्ट कह दिया कि मैं सिद्धि रूपी वरांगना को . परणंगा । मैं उस दुर्दम मदन को, तुम्हारे तथा उसके बली सहायक मोह को नष्ट कर डालूँगा। राग-द्वेष दूतों ने निराश लौटकर काम को बताया कि जिनेन्द्र को आपकी बात स्वीकार नहीं है। ..
मदन ने युद्ध की तैयारी करके रणभेरी बजवा दी। पाँचों इन्द्रियाँ, आर्त-रौद्र ध्यान, तीनों शल्य, अठारह दोष, सात व्यसन, पुण्य-पाप, दर्शनमोह, पाँच आश्रवादि योद्धाओं को लेकर जिनेन्द्र पर चढ़ाई कर दी जिससे स्वर्ग में इन्द्र, गोविन्द, त्रिनेत्र, ब्रह्मा, सूर्य, चन्द्रादि देव भी शंकित होते हैं। उस मोह को काम ने प्रधान सेनापति बनाया। अन्य योद्धाओं को लेकर काम समुद्र के समान गर्जन करता हुआ जिनेन्द्र पर चढ़ाई करने चल पड़ा।
उधर जिनेन्द्र के पास से राग-द्वेष के लौटने पर जिनेन्द्र ने संवेग को आज्ञा दे दी की रणभेरी बजवा दो। पंचसमितियों की रणभेरी बजते हो रणदक्ष पंचमहाव्रत, दशधर्म, सप्ततत्त्व आदि योद्धा एकत्र हो गए। सम्यक्त्व को प्रधान सेनापति का पद दिया गया। जिनेन्द्र का अद्भत प्रभाव था। उनके समीप लब्धियों की ध्वजाएं फहरा रही थीं तथा स्याद्वाद भेरी की ध्वनि गंजी। जिनेन्द्र स्वयं क्षायिक-दर्शन हाथी पर सवार थे, अनुप्रेक्षा का कवच पहने, समाधि की गदा का प्रहरणरूप धारण किये थे
और ललकार रहे थे कि स्मर कहाँ है ? स्मर कहाँ है ? भव्यों ने नमस्कार किया, सरस्वती ने मंगलगान किया और दया ने आशीर्वाद दिया। इसी समय संज्वलन ने विचार किया कि काम के पास जाना चाहिये । संज्वलन ने काम से जिनेन्द्र की शक्ति को बताकर कहा कि वह वहाँ से भाग जाय इसी में बुद्धिमानी है।