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________________ २६० : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक हो गया। सेठानी ने तिलकमती और तेजमती के विवाह की तैयारी कर ली । तिलकमती को फुसलाकर सेठानी रात्रि में एक श्मशान में छोड आई और उसके चारों ओर दोपक रखकर उससे कहा कि तेरा पति रात्रि में यहीं आयेगा और तुझसे विवाह करेगा। राजा नगर की शोभा देखने अपनी अटारी पर चढ़ा तो उसे कौतुक हुआ। अतः वह स्वयं श्मशान गया और सुंदरो से विवाह करके वहीं घर में छोड़ आया। वह प्रतिदिन रात्रि में उसके पास जाने लगा। कुछ समय बाद सेठ देशान्तर से लौटा। विमाता ने तिलकमती के विषय में झूठी खबरें दो । सेठ ने राजा से कहा कि मेरी पुत्रो ने किसी चोर से विवाह कर लिया है और पूछने पर कहती है कि मैं अपने पति के चरण छकर हो पहचान सकती है, वैसे नहीं । राजा ने इष्ट मित्रों सहित सेठ के घर पर दावत का प्रबन्ध किया। तिलकमती को आंख पर पट्टी : बांध दी गई और उससे सभी अतिथियों के पैरं धुलाये गए तो उसने राजा के पैर पकड़ लिए कि यही चोर मेरा पति है। राजा ने विधिपूर्वक विवाह द्वारा उसे स्वीकार किया। सभी ने हर्ष मनाया। विवाहोपरान्त वे लोग जिनमन्दिर गए। वहीं एक मुनि विराजमान थे। मुनि से तिलकमती ने पूछा कि अपने पति के प्रथम दर्शन से ही मेरा उनसे इतना प्रेम क्यों उत्पन्न हुआ ? मुनि ने बताया कि पूर्वजन्म में उसने बहुत कष्ट उठाये और अब सुगन्धदशमी व्रत के प्रभाव से उसे यह भव मिला है। वह राज्य-सुख भोगने लगो। तत्पश्चात् तपस्यापूर्वक अपने प्राणों का परित्याग करके वह ईशान स्वर्ग के विमान में देव हुई। अगले भव में वह देव मनुष्ययोनि में आया और कर्मों का क्षय करके मोक्षगामी हुआ। मयणपराजयचरिउ ___ हरिदेवकृत मदनपराजयचरित' का रचनाकाल डा० हीरालाल जैन के अनुसार १२वीं से १५वीं शती के मध्य ठहरता है। कवि ने रचना को दो संधियों में समाप्त किया है। संक्षेप में कथा इस प्रकार है : १. डा० हीरालाल जैन द्वारा संपादित, भारतीय ज्ञानपीठ, वाराणसी से । १९६२ में प्रकाशित. २. प्रस्तावना, पृ० ६१.
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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