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अपभ्रंश कथा : परिभाषा, व्याप्ति और वर्गीकरण : २५९ को पार करती हई चाण्डालिनी कन्या हई। माता-पिता दोनों ही की मत्यु हो गई। उसके शरीर की दुर्गन्ध एक योजन तक पहुँचती थी। इस दुर्गन्ध को चाण्डाल भी सहन नहीं कर सके और उन्होंने उसे एक अटवी में छोड़ दिया। वहां उदुम्बर फलों-पत्तों को खाकर वह जीवित थी। ___ एक दिन उधर से एक मुनिसंघ विहार करते हुए निकला । एक मनि ने आचार्य से पूछा कि इतनी दुर्गन्ध किस वस्तु को हो सकती है ? आचार्य ने उस चाण्डाल-सुता का नाम लिया और बताया कि रानी श्रीमती ने मुनि सूदर्शन को क्रोधपूर्वक कड़वे फलों का आहार दिया था अतः इस योनि में भटक रही है। पुनः मुनि ने आचार्य से पूछा कि इस स्त्री का पाप कैसे दूर होगा ? आचार्य ने जैनधर्म का उपदेश दिया और कहा कि इसका पालन करने पर प्राणीमात्र का कल्याण होता है। चाण्डाल-सुता ने भी उपदेश सुना और धर्म-ध्यानपूर्वक मर गई । इसके बाद वह उज्जैनी के एक गरीब ब्राह्मण को कुरूप कन्या हुई।
अब भी उसको दुर्गन्ध एक कोस तक जाती थी। एक बार वहां के नन्दभवन में मुनि.सुदर्शन का आगमन हुआ। दुर्गन्धा भी मुनि के प्रवचन में पहुँची। सभा में उपस्थित राजा जयसेन ने मुनि से दुर्गन्धा के विषय में पूछा। दुर्गन्धा के पाप को दूर करने का उपाय भी राजा ने मुनि से पूछा। मुनि ने सुगन्धदशमी व्रत पालन करने का उपदेश देकर उसके पालन और उद्यापन की विधि बतलाई । . . सौभाग्य से जिस दिन मुनि का उपदेश हुआ उस दिन सुगन्धदशमी ही थी। अतएव सभी ने व्रत का पालन किया एवं जिनेन्द्रदेव का पूजन किया। दुर्गन्धा ने इस व्रत का पालन किया था अतः वह मरकर . सुगति में गई। भगवान् महावीर ने राजा श्रेणिक को आगे की कथा इस प्रकार सुनाई : रत्नपुर नगरी में राजा कनकप्रभ अपनी पत्नी कनकमाला के साथ राज्य करते थे। उसी नगर में एक सेठ जिनदत्त थे जिनकी पत्नी जिनदत्ता थो। इनके तिलकमती नाम की एक पुत्री थी जो रूपवती तथा गुणवती थी। सेठानी के मर जाने से सेठ ने दूसरा विवाह कर लिया। उससे तेजमती नामक कन्या उत्पन्न हुई। तिलकमती की सौतेली मां का व्यवहार बहुत कठोर था। सेठ राजा के आदेश से देशान्तर भ्रमण को चला गया तो विमाता का व्यवहार और भी कटु