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अपभ्रंश कथा: परिभाषा, व्याप्ति और वर्गीकरण : २५७
उसे अपना मन्तव्य बताया। राजा ने उसे मुनि को पुष्प अर्पित करने " को कहा। मुनि के पास जाने पर मुनि ने उसे जिनेन्द्र भगवान् को फूल चढ़ाने को कहा । ग्वाल ने भगवान् जिनेन्द्र का पूजन किया अतः उसे सुन्दर रूप मिला और चूँकि कमल चढ़ाते समय हाथ में कीचड़ लगा था अतः उसके हाथ में कंडु हुआ ।
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दूसरे प्रश्न के उत्तर में मुनि महाराज ने बताया कि पद्मावती पूर्व जन्म में श्रावस्ती के सेठ की स्त्री थी । उसके व्यभिचारी होने के कारण सेठ ने वैराग्य ले लिया और पुनः जन्म लेकर चम्पा नगरी का धाडीवाहन राजा बना। जिस ब्राह्मण के साथ सेठ की पत्नी ने व्यभिचार किया था वह मरकर हाथी हुआ । सेठानी मरकर पुनः स्त्री हुई । उसे पतिवियोग हुआ । अन्त मे वह अपनी पुत्री के प्रयत्न से धर्म-ध्यानपूर्वक मरकर कौशाम्बी नरेश वसुपाल के यहाँ उत्पन्न हुई। राज परिवार में इसका अशुभ जन्म जानकर उसे मंजूषा में बन्द करके यमुना नदी में बहा दिया । एक माली ने जल से निकालकर उसका पालन-पोषण किया । पूर्व कर्मानुबन्ध से धाडीवाहन राजा से उसका विवाह हुआ । हाथी द्वारा हरण अथवा अन्य ऐसे ही कष्टों से पीड़ित पद्मावती करकंडु जैसे महान् व्यक्ति की माँ थी ।
तीसरे प्रश्न में मुनिराज जी ने कहा कि पूर्वजन्म में करकंडु के पास एक सुआ था। सुआ चतुर था पर उसके ऊपर सर्प ने धावा बोल दिया तो कंडु ने उसकी रक्षा की और णमोकार मन्त्र उसे दिया । उस सर्प को भी णमोकार मंत्र मरते समय मिल गया था। इतने मात्र से उसे विद्याधर का जन्म मिल गया । पूर्वभव का वैर होने के कारण उसने मदनावली का हरण किया। मुनि के इन सब उत्तरों को पाकर करकंडु
वैराग्यभावना प्रबल हो उठी । वह अपने पुत्र वसुपाल को राज्य देकर मुनि हो गया । करकंडु की मां भी अर्जिका ( साध्वी ) हो गई तथा उसकी पत्नियों ने भी वैसा ही किया । करकंडु ने घोर तपश्चरण किया और केवलज्ञान तथा मोक्ष प्राप्त किया ।
सुअंधदहमीकहा
जैनधर्म पालन करने वाला प्रत्येक गृहस्थ सुगन्धदशमी व्रत की कथा से अवगत होता है । उनके वार्षिक पर्व दशलक्षणधर्म पर भाद्रपद शुक्ला
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