________________
२५४ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक
गण में माता पद्मावती का आगमन हुआ। उसने करकंडु को बताया कि चम्पाधिप उसके पिता हैं। पद्मावती ने पिता-पुत्र की पहचान कराई। दोनों का मिलाप हुआ और करकंडु को चंपाधिप का राज्य मिला। .. इसके बाद करकंडु ने द्रविड़ देश को जोतने की प्रतिज्ञा की । करकंडु के मन्त्री ने बताया कि चोल, पाण्ड्य और चेर नाम के राजा आपको सेवा नहीं करते । इस पर करकंडु ने उनके पास अपना दूत भेजा । दूत को उन राजाओं ने यह कहकर वापिस कर दिया कि वे जिन के सिवाय किसो को सिर नहीं झुकाते । करकंडु ने सूचना पाते ही उन पर सेना के साथ चढ़ाई कर दो। मार्ग में वह तेरापुर नगर में पहुंचा। वहां के राजा शिव ने करकंड़ से भेंट को और समीप को पहाड़ी के चढ़ाव पर एक वामी है जिसकी पूजा प्रतिदिन एक हाथो करता है-यह बात उसे बतलाई। राजा करकंडु उस राजा के साथ वहां गया, पार्जनाथ के दर्शन किये तथा ऊपर चढ़कर वामी को भी देखा। उसी समय हाथी सरोवर से कमल लेकर आया और वहीं आकर चढ़ाया। राजा ने वामी को खुदवाया तो वहां पार्श्वनाथ भगवान् की मूर्ति निकली, जिसे वे बड़ी भक्ति से गुफा में ले आये। मूर्ति के सिंहासन पर करकंडु को एक गांठ-सी दिखाई पड़ी। उसने शिल्पी से पूछा तो शिल्पी ने बताया कि यहां एक जलवाहिनी थी, उसी को बन्द करने के लिए. यह लगाई गई है। करकंडु को जलवाहिनी देखने का कौतुक हुआ और गांठ को तुड़वा दिया। गांठ के टूटते ही अथाह जल निकल पड़ा। करकंडु पश्चात्ताप करने लगे तभी एक विद्याधर ने आकर गुफा का इतिहास बताया और जलप्रवाह रोकने का वचन दिया।
करकंडु ने उस देव से पूछा कि इस गुफा-मन्दिर को किसने बनवाया ? देव ने कहा कि एक समय दक्षिण विजया के रथनपूर नगर में नील और महानील नाम के दो विद्याधर भाई राज्य करते थे । शत्रु ने उन्हें खदेड़ दिया तो वे तेरापुर में आकर रहने लगे। धीरे-धीरे उन्होंने वहां राज्य स्थापित कर लिया और एक जैन मुनि के उपदेश से इस गुफामन्दिर का निर्माण कराया। इसी समय दो विद्याधर लंका की ओर यात्रा पर जा रहे थे। उन्होंने रावण के वंशजों द्वारा बनवाये गये मलय