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________________ अपभ्रंश कथा : परिभाषा, व्याप्ति और वर्गीकरण : २५३ एक बार श्मशान में यशोभद्र और वीरभद्र मुनीश्वर आये। उनके संघ में से एक ने एक नरकपाल को आँखों और मुख से बाँस का विटप निकलते देखा। इस आश्चर्य का कारण उन्होंने मुनि से पूछा। मुनि ने बताया कि ये थोड़े से बाँस जिसके हाथ चढ़ जायेंगे वह समस्त पृथ्वी का राजा होगा। किसी प्रकार वे सब बाँस करकंडु के हाथ लग गए । मातंग ने करकंडु को नाना विद्याएं सिखलाईं। मातंग करकंडु को विद्यावान् की संगति का उपदेश देता है। उसे उदाहरण द्वारा स्पष्ट करता है। मूर्खसंगति का कुफल एवं नीच-संगति की कहानी बताता है । उच्च-पुरुष की कहानी बताता है । इस प्रकार करकंडु को मातंग कुछ-न-कुछ सिखलाता रहता है। करकंडु भी हर समय खेचर मातंग के पास रहता है। इधर दन्तीपुर के राजा की मृत्यु हो जाती है। कोई राजकुमार न होने के कारण मन्त्री ने एक हाथी को पूजकर उसे जल से भरा घड़ा देकर यह निश्चय किया कि यह हाथी जिस किसी का इस जल से अभिषेक करेगा उसी को राज्य सौंप दिया जायेगा। हाथी ने श्मशान भूमि में एक कामदेव स्वरूप राजकुमार को देखा और उसी पर घड़े का जल छोड़ दिया। लोग उसे मातंगपुत्र समझ रहे थे। विद्याधर की सारी विद्याएं लौट आईं और तभी उसने सबको करकंडु के राजकुमार होने की बात बताई। करकंडु इस प्रकार राज्य पर आसीन हुआ । . एक दिन करकंडु नगर में भ्रमण कर रहा था तो उसने एक देशांतर से आये हुए पटधारी को देखा। उससे करकंडु ने पट लेकर देखा तो वह मुग्ध-सा देखता रहा। पूछने पर पटधारी ने बताया कि 'सोरठ • देश के गिरनगर नामक नगर के राजा यमराज अजयवर्मा की अतीव सुन्दर कन्या मदनावली का जन्म हुआ। अवस्था प्राप्त कन्या ने खेचरों '. 'से करकंडु की कीर्ति के गीत सुने और वह मदनपोड़ित हो गई। अतः यह चित्रपट उसी का मैं लिए घूम रहा हूँ। जो इसे देखकर मोहित हो वही उसका वर होगा। आप मेरी बात मानकर उसे ग्रहण करें।' करकंडु ने बात स्वीकार कर ली और मदनावली को विवाह लाये । माता आशीर्वाद दे रही थीं कि चम्पाधीश का संदेश पहुँचा। चम्पाधीश और करकंडु की सेनाओं में घमासान युद्ध हुआ। युद्ध में करकंडु ने खेचरी विद्या छोड़ी। जब उसकी विद्या का हरण कर लिया गया तो उसने धनुष हाथ में लिया। युद्ध में चम्पाधिप का मान दलित हुआ । समरां
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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