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________________ २५२ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक राजा ने स्वप्नफल में पूत्रोत्पत्ति की बात कही। जब पद्मावती की गर्भावस्था आई, राजा ने सौभाग्योत्सव मनाया। इस शुभ अवसर पर रानी को दोहला उत्पन्न हुआ। वह दिन-ब-दिन कृश होती गई। राजा ने कारण पूछा तो संकोच के साथ रानी ने कहा कि रिमझिम बँदों में नररूप में हाथी पर आपके साथ भ्रमण करने की इच्छा है। राजा ने यह. सम्भव कर दिया। परन्तु जिस हाथी पर वे चढ़कर चले वह हाथी भागकर कालिंजर की ओर चल पड़ा और किसी भी प्रकार नहीं रुका। . रानी के आग्रह पर राजा वृक्ष की डाल पकड़कर बच गया और दुःखी मन राज्य में वापिस लौट आया। दौड़ते-दौड़ते हाथी एक गहरे सरोवर में घुस गया। रानी चतुराई से जल में कूद पड़ी। रानी सरोवर से निकलकर एक उपवन में पहुँची जोकि सूखा पड़ा था। वह वहीं एक वृक्ष के नीचे विश्राम करने लगी। उपवन, नन्दनवन के समान फल-फूल . उठा। यह देखकर वनपाल वहाँ आ पहुँचा। वनपाल वन के फूलने के कारण की खोज करने लगा। वनपाल ने रानी को देखा और उसे पुत्री कहकर अपने घर चलने को कहा। वह उसके घर चली गई। माली को पत्नी कुसुमदत्ता के मन में रानी के सौन्दर्य को देखकर पाप आ गया और वह अपने पति के प्रति शंका करने लगी। अतः मालिन ने रानी को दोष लगाकर घर से निकाल दिया। गर्भवती रानी ने एक श्मशान भूमि में होनहार पुत्र को जन्म दिया। बालक के जन्म से श्मशान में भी अनेक मंगल हए। रानी अपने पुत्र को गोदी में उठा ही रही थी कि उसे अपने सामने एक मातंग दिखाई पड़ा। मातंग ने शिशु को उठा लिया। रानी विलाप करने लगी तो मातंगरूपधारो विद्याधर ने रानी को समझाया कि एक बार में अपनी पत्नी के साथ आकाशमार्ग से जा रहा था तो विंध्यपर्वत के ऊपर पहुँचते ही मेरा विमान रुक गया। नीचे आकर देखा तो मुनि थे, मैंने उन्हें खड्ग से मारने का निश्चय किया। मुनि ने मेरी विद्याओं के नाश होने का शाप दिया। मेरी प्रार्थना पर उन्होंने कहा कि धाडीवाहन की रानी पद्मावती श्मशान भूमि में पुत्रोत्पन्न करेगी। तब तू उसका पालन . करेगा तथा उसे राज्य मिलेगा और तुझे सभी विद्याएँ पूर्ववत् मिल जायेंगी। ___ मातंग बालक को अपने घर ले गया। पद्मावती ने दुःखहारी व्रत ले लिया । बालक के हाथ में खाज था अतः उसका नाम करकंडु रखा ।
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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