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२५० : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक
करेंगे और दूसरे दिन दीक्षा ले लेंगे। विवाह हुआ और रात्रिकाल में सुन्दर चन्द्रोदय हुआ। चारों कुभारियां वासगृह में जम्बूस्वामी को रिझाने के लिए विविध कामचेष्टाएं करने लगीं।
जम्बूस्वामी को चारों पत्नियों के सौन्दर्य एवं कामचेष्टाओं का उन पर किंचित् प्रभाव नहीं पड़ा। उन्होंने निराश होकर क्रमशः लौकिक सुखों की कहानियां जम्बूस्वामी को सुनाईं। परन्तु इनके उत्तरस्वरूप जम्बूस्वामी ने भी उतनी ही कहानियां सुनाईं और पत्नियों की कहानियों का खण्डन कर दिया। इसी में आधी रात हो गई । विद्युच्चर नामक चोर छिपकर इन सबके वार्तालाप को सुन रहा था। उसका चित्त बदल गया। जम्बूकुमार को मां व्याकुलतावश बार-बार जाग रही थी, उसने चोर को देखा और उससे पूछा कि तू यहां क्यों है और तुझे क्या चाहिये ? चोर ने अपना परिचय दिया और मां से सब बात पूछकर कहा कि इस घर में मुझे पहुँचाओ, यदि में समझा सका तो ठीक है अन्यथा मैं भी दीक्षा ले लूंगा। मां ने जम्बूस्वामी को उसका परिचय अपने भाई के रूप में कराया। जम्बूस्वामी ने मामा के समाचार पूछे । विद्यच्चर ने उत्तर, दक्षिण, पश्चिम के बाद पूर्व दिशा में भ्रमण किए हुए देशों के नाम लिए।
तत्पश्चात् विद्यच्चर ने जम्बूस्वामी को सांसारिक सुख की आवश्यकता आदि के विषय में चार कथाएं सुनाईं। परन्तु उनके खण्डन में जम्बूस्वामी ने भी चार कथाएं सुनाई। जम्बूस्वामी पर किसी का कुछ प्रभाव नहीं पड़ा। विद्युच्चर को भी संसार असार लगने लगा और उसने भी दीक्षा लेने की इच्छा व्यक्त की। जम्बूस्वामी के साथ उनके माता-पिता, चारों वधुएं और विधुच्चर तथा राजा श्रेणिक सुधर्मगणधर के पास पहुंचे। जम्बूस्वामी, उनके पिता और विद्युच्चर निर्ग्रन्थ साधु हो गए। उनकी माता एवं वधुएं आर्थिकाएं हो गईं। अठारह वर्षोपरान्त विपुलगिरि से सुधर्मस्वामी मोक्ष गए। इसी दिन जम्बूस्वामी को केवलज्ञान प्राप्त हुआ। इसके बाद जम्बूस्वामी अठारह वर्षों तक धर्मोंपदेश करते रहे और विपुलगिरि पर्वत से मोक्ष गए। माता-पिता एवं वधुए विभिन्न स्वर्गों में देव हुए। जम्बस्वामी के मोक्षगमनोपरान्त विद्युच्चर मुनिसंघ के साथ ताम्रलिप्ति पधारे और नगर के बाहरं ठहरे।