________________
२४८ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक
कन्याओं से अपने पुत्र की शादो का वचन दे दिया था। अतः इन चारों से धूमधाम के साथ जम्बूस्वामी का विवाह रचाया गया। इसी शुभावसर पर राजा ने वसन्तोत्सव मनाने की घोषणा की। सभी ने उपवन में जाकर केलिक्रीडापूर्वक उत्सव मनाया। जलक्रीड़ा के बाद जब सभीनगर को लौट रहे थे तभी राजा का विषमसंग्रामशूर नामक हाथी बिगड़ गया और उसने आतंक की स्थिति पैदा कर दी। सभी प्रयत्न निष्फल हुए परन्तु जम्बूस्वामी ने हाथो को वश में किया और राजा द्वारा प्रशंसापात्र बने।
राजा ने ज़म्बस्वामी का सम्मान किया और नगर में पहुँचकर राजसभा बुलाई। एक दिन राजा जम्बूस्वामी के साथ राजसभा में बैठा था तो गगनगति नामक विद्याधर आया और राजा से निवेदन करने लगा कि केरल के मृगांक राजा की सौन्दर्यमति विलासवती नामक कन्या. से आपका विवाह होना चाहिये-यह एक ,मुनि का कथन है। परन्तु हंसद्वीप के रत्नचल राजा ने उस कन्या को प्राप्त करने के लिए केरल का घेरा डाल दिया है। केरल के राजा ने कल के दिन नगर से बाहर आकर · युद्ध करने का निश्चय किया है । अतः मैं भी केरल जा रहा हूँ और अपने
धर्म का पालन करूंगा । राजा की आज्ञा लेकर जम्बूस्वामी विद्याधर के विमान से केरल की ओर चल दिये । इधर राजा ने अपने सेनापतियों को केरल की ओर कूच कर देने को आज्ञा दी। राजा. भी सेना के साथ चला। वन-नदियों-पर्वतों को पार करते हुए कुरल पर्वत के समीप राजा ने पड़ाव डाल दिया। जम्बूस्वामी केरल नगरी के बाहर ही विमान से उतर गए और मृगांक राजा के दूत बनकर रत्नशेखर को छावनी में गए। रत्नशेखर को दूसरे की कन्या बलपूर्वक न लेने की सलाह देने पर दोनों में विवाद बढ़ गया। रत्नशेखर ने दत को पकड़कर मार डालने का आदेश दिया। जम्बूस्वामी ने विद्याधर द्वारा दी गई तलवार-ढाल से सैकड़ों योद्धाओं को मृत्यु के घाट उतार दिया। विद्याधर ने भी युद्ध किया और शत्रु की सेना छिन्न-भिन्न कर दो। ___मृगांक को यह समाचार मिला तो वह भी अपनी सेनाओं के साथ नगर से बाहर आया और भयंकर युद्ध हुआ। रत्नशेखर और गगनगति ने आकाश-युद्ध किया जिसमें विद्याधर घायल हुआ। रत्नशेखर ने पुनः मृगांक से युद्ध किया और उसे बाँधकर ले गय।। इससे मृगांक की सेना घबड़ा गई।