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________________ २४२ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक अतिबल और भीमबल दो पुत्र थे। राजा के वृद्ध होने पर भीमबल गद्दी पर बैठा और अतिबल को देशनिकाला दे दिया। अतः वह जंगल में बस गया और गिरिशिखर नाम का नगर बसाया। अब तक तीन पीढ़ियाँ बीत चुकी हैं, वर्तमान में वनराजा गिरिशिखर में है और सोमप्रभ पुण्ड्रवर्धन में शासन करता है। इसको सुनकर. नागकुमार ने व्याल से कहा कि शीघ्र ही पुण्ड्रवर्धन पर आक्रमण करो और राज्य लेकर वनराजा को सौंप दो । बाद में नागकुमार और वनराजा वहाँ पहुँचे और वनराजा को मुकुट पहनाया। सोमप्रभ सुप्रतिष्ठपुर पहुंचा और राजा विजयसिंह के अचय एवं अभय को अपनी पराजय का समाचार दिया। बाद में वे नागकुमार के सेवक हो गए ॥ ६॥ . लक्ष्मीमती को उसके पिता के पास छोड़कर वह अपनी अन्य तीन पत्नियों एवं सिपाहियों के साथ उर्जयन्त पर्वत की यात्रा पर चला । वह एक जलन्ती नामक जंगल में पहुंचा और विषैले आम्र-कुंज में पड़ाव डाला। उसने पूरे परिकर के साथ आम्र फलों को खाया परन्तु उनका कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ा। इस पर दुरमुख नाम का भील प्रस्तुत हुआ और एक चमत्कार बताया। नागकुमार की खबर सब जगह हो गई। अतः ५०० योद्धाओं ने आकर नागकुमार को अपना स्वामी स्वीकार किया । वहाँ से वह अन्तरवन पहुंचा और राजा अन्तरपुर का अतिथि बना। अन्तरपूर के राजा के पास गिरिनगर के राजा अरिवर्मा को सहायता के लिए पत्र आया था। नागकुमार ने अन्तरपुर के राजा के साथ चन्द्रप्रद्योत के विरुद्ध चलने की इच्छा व्यक्त की। दोनों ने सेना के साथ गिरिनगर को प्रयाण किया। नागकुमार के युद्धकौशल से चन्द्रप्रद्योत पकड़ लिया गया। गिरिनगर के राजा ने जब युद्ध के नायक के विषय में पूछा तो अन्तरपूर के राजा ने कहा कि वह उसका अतिथि था। बाद में जानकारी हुई कि वह उसकी बहिन पृथ्वीदेवी का पुत्र है तो अत्यानन्द मनाया गया। नागकुमार ने उसकी पुत्री गुणमती से विवाह किया । नागकुमार ने पवित्र पर्वत की यात्रा को और पूजन किया। एक दिन नागकुमार से सहायता प्राप्त करने के लिए गजपुर के राजा अभिचन्द्र का दूत आया। विद्याधर सुकण्ठ ने अपने भाई शुभचन्द्र को मारकर उसकी सात कन्याओं का अपहरण कर लिया था। 'नागकुमार सहायता के लिए गया और सुकण्ठ को मारकर राजकुमारियों को मुक्त
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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