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भ्रंश कथा: परिभाषा, व्याप्ति और वर्गीकरण : २४१
एक दिन एक व्यापारी ने, जो अपनी यात्रा से वापिस आया था, "नागकुमार से कहा कि रभ्यक जंगल में तीन चोटी वाला एक पर्वत है | उसके तल में एक जिनमंदिर था जिसके लोहे के बन्द दरवाजे इन्द्र के वज्र से भी नहीं खुले । नागकुमार यह सुनकर सदल वहाँ पहुँचा और उसके हाथ के स्पर्शमात्र से मन्दिर के कपाट खुल गए । मन्दिर में चन्द्रप्रभु तीर्थंकर की प्रतिमा थी । उसने वहाँ पूजन किया । इतने में संवर ने आकर बताया कि उसकी पत्नी को भीमासुर कालगुहा में उठाकर ले गया । नागकुमार व्याल के साथ पाताल में गया । वहाँ उसने दानवकुमारी, जो अतीव सुन्दरी थी, को देखा । द्वारपाल ने उन्हें अन्दर प्रविष्ट नहीं होने दिया अतः वे संसद भवन की ओर आए, जहाँ असुर ने आदर के साथ उनका स्वागत किया और जवाहरात तथा रत्न भेंट किये । संवर की पत्नी ने उनका विरोध किया ॥ ५॥
तत्पश्चात् नागकुमार उसी जंगल की कंचनगुहा में प्रविष्ट हुआ । इसका मार्ग संवर ने बताया था । वहाँ उसकी भेंट देवी सुदर्शना से हुई । सुदर्शना ने नागकुमार का स्वागत किया और अपनी समस्त विद्याओं को उसे आग्रहपूर्वक प्रदान किया। नागकुमार ने विद्याओं की प्राप्ति को कथा जानकर विद्याएँ स्वीकार कर लीं । परन्तु देवी से कहा कि अभी सभी विद्याएँ वह अपने पास रखे और आवश्यकता होने पर उसे दे दे । . इसके बाद देवी सुदर्शना की सलाह से नागकुमार एक अन्य कालवेतालगुहा में घुसा और वहाँ जितशत्रु को पूर्ण सम्पत्ति को प्राप्त कर लिया । तदनन्तर वह 'दैत्य- वृक्ष - छिद्र' के पास गया। वहाँ लकड़ी के राक्षस को ठोकर मारी और वहाँ जितशत्रु का पुराना धनुष देखा । बाहर आने पर वह जिनमन्दिर गया तथा वहाँ से अपने निवासस्थान पर आया ।
तदनन्तर नागकुमार संवर के मार्गनिर्देशन में जंगल के बाहर आ गया। गिरिशिखर का वनराजा राजकुमार के समीप आया और उसने साधु आदेशानुसार वह अपनी कन्या लक्ष्मीमती का विवाह उसके साथ करना चाहता है । अतः वह वनराजा के घर गया और विवाह किया । एक दिन नागकुमार ने एक साधु से प्रश्न किया कि वनराजा कोई जंगल का आदमी है अथवा राजा ? इस पर साधु ने वनराजा की कहानी सुनाई । पुण्ड्रवर्धन नामक नगर में अपराजित नाम का सूर्यवंशी राजा था। उसके सत्यवती और वसुन्धरा दो रानियाँ थीं ।
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