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________________ २४० : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक विवाह कर लिया। कुछ दिन बाद पाटलिपुत्र को गौड़ देश के अरिदमन ने घेर लिया। ये दोनों भाई भी वहीं थे। दोनों राजकुमारियों ने पिता और अपने भय की बात राजकुमारों को बताई। राजकुमार राजा की सहायता के लिए तैयार हो गए। घमासान युद्ध हुआ और शत्रु की पराजय हुई। व्याल अपने छोटे भाई को छोड़कर कनकपुर आ गया जहाँ कि नागक की दृष्टि से उसका तीसरा नेत्र नष्ट हो गया था। .' इसो समय श्रीधर ने नागकुमार को मारने का अन्तिम प्रयत्न किया। श्रीधर ने जिन आदमियों को मारने के लिए नियुक्त किया था वे नागकुमार के निवासस्थान में जिस द्वार से घुसे उसकी निगरानों व्याल कर रहा था। सभी शत्रु मार डाले गए। नागकुमार बाहर निकलकर आया तो उसे नयनधर मन्त्री मिला जिसने उसके पिता का सन्देश दिया। पिता ने सन्देश भेजा था कि यद्यपि वह सम्राट होने वाला है परन्तु कुछ समय के लिए देश छोड़ दे और बुलाने पर आ जाए। राजकुमार ने पिता को आज्ञा मानकर अपनी सेनाशक्ति के साथ मथुरा की ओर प्रस्थान किया। — नागकुमार ने मथुरा पहुँचकर अपनी सेना को शहर से बाहर हो रोक दिया और स्वयं शहर देखने गया। वहाँ उसे पता चला कि वहाँ के राजा ने कान्यकुब्ज के राजा की पुत्री शीलवंती को, जिसका कि विवाह सिंहपुर के राजा हरिवर्मा से होने जा रहा था, जबरदस्ती भगाकर कैद कर लिया है। नागकुमार का दुर्वचन और उसके सैनिकों से युद्ध हुआ। इसी बीच व्याल आ पहुँचा। दुर्वचन ने अपने राजा को पहचान लिया और स्वयं को छोड़ने को प्रार्थना की। नागकुमार ने उसे यह कहकर छोड़ दिया कि कैद की हुई राजकुमारी को अपनी बहिन की तरह उसके पिता के यहाँ पहुँचा दो। ___ एक दिन नागकुमार ने देखा कि उसके मार्ग पर ५०० वाद्यकलाकार चले आ रहे हैं। उनमें से मुख्य राजा जालन्धर से ज्ञात हआ कि उन्हें कश्मीर के राजा नन्द को पुत्री त्रिभुवनरति ने वाद्य में हरा दिया है। उस राजकुमारी को प्रतिज्ञा है कि जो उसे कला में पराजित करेगा वह . उसी का वरण करेगी। नागकुमार व्याल के साथ कश्मीर गया। वहाँ नागकुमार को देखते ही राजकुमारी मोहित हो गई। बाद में नांगकुमार से सभी तरह संतुष्ट होकर दोनों का विवाह हुआ।
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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